कल जब से सुना है कि मुलायम सिंह ने कहा है यदि वो सत्ता में आएंगे तो मायावती की मूर्तीयों को गिरा दिया जाएगा। ये बात सुनते ही मुझे उन मूर्तिकारों का ख़याल आ गया जिनके पास आजकल इस प्रकार की भव्य मूर्तियाँ बनने का मौका नही होता। और ये जो एक दो मौके साल में उन्हें मायावती उपलब्ध कराती है तो जनाब भाई मुलायम सिंह जी उम्हे तुड़वाने पर तुल गए हैं, जबकी अभी मायावती का इरादा ऐसी और कईं मूर्तियाँ लगवाने का है। अब बेचारे मज़दूर क्या करेंगे। पहले तो आजकल ऐसे नेता नही है जिनकी मूर्तियाँ बनाकर किसी चौराहे या पार्क में लगायी जायें और जो एक-दो नेता ऐसे है जो कि ख़ुद को महान साबित करना चाहते हैं तो उन्हें उनके राजनीतिक दुश्मन मूर्ती बनाने नही देते। नुक्सान किसका है? इन मज़दूरों का। जहाँ सारा देश अच्छे नेताओं के लिए दुआ मागता है और अपने रब से शिकायत करता है कि तूने ऐसे नेता बनाने क्यूँ बंद कर दिए वहीँ शायद ये मज़दूर ये दुआ करते होंगे ऐ रब तूने पहली बार तो ऐसे नेता बनाये हैं जो जीते जी अपनी मूर्ती बनवा के लगवाना चाहते है तू इन्हे और हौंसला दे कि ये तमाम विरोध के बावजूद अपनी मूर्ती लगवाते रहे।
रही मूर्तिकारों की तो इनकी परवाह है किसे? जो पहले बड़े और महान नेताओं की मूर्तियाँ बनाते थे वही अब केवल भगवान् की मूर्ती बनते है जिससे इनका हौसला बढ़ता है या फिर कुछ सजावटी वस्तुएं जिनसे शायद ही इनका कुछ खास भला होता होगा।
सही है, हर सांसद, विधायक, पार्षद की भी असंख्य मूर्तियाँ हर गली, चौराहे, इमारत पर लगवा दी जनि चाहिए. इससे अपनी ही नज़र में बौने नेता ख़ुद को उंचा महसूस कर सकेंगे और कुछ रोज़गार भी पैदा हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंलेकिन इतने बड़े पैमाने पर मूर्तियाँ बनेंगी तो 'बहनजी' अरबों का चढावा लेकर किसी कम्पनी को इसका ठेका दे सकतीं हैं (फ़िर कैसे पैदा होगा?)