रविवार, 19 अप्रैल 2009

तुझे देखकर बेईमान दिल ये मेरा! हाल ऐ दिल!

यूँही बैठा हुआ इस तपते सूरज को देख रहा था, और दुआ करने लगा के बारिश हों जाए। अब ये तो मुझे भी पता है के बारिश अपने वक्त पर ही होती है मगर दुआ भी सुना है कुछ असर रखती है। तो इसी लिए दुआ करता रहता हूँ। मगर इस बारिश के ज़िक्र के साथ कुछ यादें भी तो जुड़ी हैं। आज चंद लाइन उसी बारिश के नाम लिख रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएँगी।

बारिश की ठंडी बूँद ने जब मेरे हाथ को छुआ,
यूँ लगा के तेरे हाथ से टकरा आया हो हाथ मेरा।

चलने लगी जो ठंडी हवा और उड़ने लगी,
बादलों के कतार जब आसमान में,
यूँ लगा तेरी जुल्फें लहरा रही हों,
जिनसे टकरा गया हों चेहरा मेरा।

ज़माना जब कह उठा,
के बादलों को देखो तो आज,
यूँ लगा के जैसी किसी ने रुख़ से,
हटा दिया हों नक़ाब तेरा.

हों जाता है मौसम ये बेईमान सा,क्यूँ कभी?
महकने लगती है साँसे, उस खुशबू से क्यूँ?
और क्या वजह है के हों जाता है,
तुझे देखकर बेईमान दिल मेरा?

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

ये जनाज़ा है एक आशिक का जो अब नहीं रहा। हाल ऐ दिल!

यूँ पराया कर दिया उन्होंने मुझे देखो,
जैसे अब मैं उनके दिल का हिस्सा नहीं रहा,
चाहता रहा जिस शख्स को उम्र भर,
वो कह के चल दिया, " अब वास्ता नहीं रहा"।

हज़ार ख़्वाब देख दिए थे जिसकी ख़ातिर,
खो बैठा था अपना हवास भी मैं
,वो जिसको सोचता था सुब्हो-शाम, हर पल,
वो यूँ गया जैसे, गया वक़्त नहीं रहा।

है कहाँ मुमकिन उसे यूँ भूल जाना,
है कहाँ आसन ना याद करना उसे,
वो है मेरी साँसों में शामिल,
जिसके दिल में अब ये नादाँ नहीं रहा।

कल जब सुबह उठो, तो ज़रा झांक लेना खिड़की से,
सुन लेना आवाजें जो कभी तुम्हे बेचैन कर जाएँगी,
हो सके तो पूछ भी लेना बाहर गुज़रने वालों से,
जवाब यही मिलेगे पूछने पर तुम्हे,
"ये जनाज़ा है एक आशिक का जो अब नहीं रहा।"

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

दिल में जलने का अरमान न रह जाए! चार लाइन!

के बात कुछ तो आज हो ही जाए,
कभी हम हँसे और कभी वो मुस्कुराये,
हो अगर सितम दिल पर, चलो ये भी सही,
के दिल में जलने का अरमान, रह न जाए।

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