यूँही बैठा हुआ इस तपते सूरज को देख रहा था, और दुआ करने लगा के बारिश हों जाए। अब ये तो मुझे भी पता है के बारिश अपने वक्त पर ही होती है मगर दुआ भी सुना है कुछ असर रखती है। तो इसी लिए दुआ करता रहता हूँ। मगर इस बारिश के ज़िक्र के साथ कुछ यादें भी तो जुड़ी हैं। आज चंद लाइन उसी बारिश के नाम लिख रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएँगी।
बारिश की ठंडी बूँद ने जब मेरे हाथ को छुआ,
यूँ लगा के तेरे हाथ से टकरा आया हो हाथ मेरा।
चलने लगी जो ठंडी हवा और उड़ने लगी,
बादलों के कतार जब आसमान में,
यूँ लगा तेरी जुल्फें लहरा रही हों,
जिनसे टकरा गया हों चेहरा मेरा।
ज़माना जब कह उठा,
के बादलों को देखो तो आज,
यूँ लगा के जैसी किसी ने रुख़ से,
हटा दिया हों नक़ाब तेरा.
हों जाता है मौसम ये बेईमान सा,क्यूँ कभी?
महकने लगती है साँसे, उस खुशबू से क्यूँ?
और क्या वजह है के हों जाता है,
तुझे देखकर बेईमान दिल मेरा?
कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
रविवार, 19 अप्रैल 2009
तुझे देखकर बेईमान दिल ये मेरा! हाल ऐ दिल!
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अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए है। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा ... बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंबरसात मेरा पसंद का मौसम है।बहुत खूब लिखा है आपने,बहुत खूब्॥
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