रविवार, 25 अप्रैल 2010

"कुछ ख्वाब कभी सच नहीं हुआ करते।'' हाल ऐ दिल!

मैं आज फिर,
रोज़ की तरह सो कर उठा,
तुम्हें ढूंढा कुछ देर,
बिस्तर पर हाथ मारते हुए,
फिर याद आया,
"कुछ ख़्वाब कभी सच नहीं हुआ करते।''

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

कमी शायद मुझी में थी! दो लाइन!


मेरे दिल में रहकर भी, वो बेगाना ही रहा,
कमी शायद मुझी में थी, या जगह थोड़ी कम रही होगी....

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