रविवार, 25 अप्रैल 2010

"कुछ ख्वाब कभी सच नहीं हुआ करते।'' हाल ऐ दिल!

मैं आज फिर,
रोज़ की तरह सो कर उठा,
तुम्हें ढूंढा कुछ देर,
बिस्तर पर हाथ मारते हुए,
फिर याद आया,
"कुछ ख़्वाब कभी सच नहीं हुआ करते।''

6 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. खूब उतारा है ख़्वाबों को....पुरे हो जाएँ तो हकीकत बन जायेंगे ना..

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  3. वाह .. निःशब्द आपकी छोटी से रचना पर .. बहुत लंबी बात कह गयी ...

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  4. ज़र्रा नवाज़िश क शुक्रिया।

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