गुरुवार, 17 जुलाई 2008

अधूरी कहानी


सुबह से शाम हो गई और वो थक कर बैठ गई,
शाम
रात में बदली और अँधेरे की काली चादर उसे ढक गई.

अँधेरे से डर लगता था जिसे वो उस दिन अँधेरे की गोद में ही सो गई,
सुबह का इंतेज़ार लंबा हुआ और उसे देखने की उम्मीद भी उसी अँधेरे में खो गई .

आँख
से बस एक आंसू ही झलक सका और ज़िन्दगी उसी पल में ठहर गई,

पर दुनिया में फिर सुबह हुई, कुछ देर से ही सही.

कुछ लोगो की आँखें नम हुई, पर उसकी याद भी उन्ही आंसुओ में बह गई,
बाकी जिंदगिया चलती रही , पर उसकी कहानी अधूरी ही रह गई.

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