मंगलवार, 22 जुलाई 2008

बहुत दिनों से कुछ माँगा नही है तुमसे! हाल ऐ दिल!



बहुत दिनों से कुछ माँगा नही है तुमसे,
सोचता हूँ आज कुछ मांग कर देखूं

यूँ तो देख चुका हूँ हर दर्द जिंदगी का मैं,
सोचता हूँ एक और मांग कर देखूं

है वैसे तो मुश्किल तुम्हे भूल जाना मगर,
सोचता हूँ इसको भी एक मौका देकर देखूं

था मैं भी कुछ बदनसीब के बस खुशियाँ ही मांगी दुआओं में,
अब सोचता हूँ कुछ और ग़म मांग कर देखूं




4 टिप्‍पणियां:

  1. सही लिखा है आपने। यदि जीवन में गम नहीं होंगे तो खुशियों का अहसास कैसे होगा। सुख और दुख के मधुर मिलन से ही तो जीवन परिपूर्ण होता है।

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  2. ^यूँ तो देख चुका हूँ हर दर्द जिंदगी का मैं,
    सोचता हूँ एक और मांग कर देखूं।^
    जिन्‍दगी की सच्‍चाई को बहुत खूबसूरती के साथ आपने शेर के रूप में पिरो दिया है। बधाई।

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  3. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति, नदीम भाई!

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