बहुत दिनों से कुछ माँगा नही है तुमसे,
सोचता हूँ आज कुछ मांग कर देखूं।
यूँ तो देख चुका हूँ हर दर्द जिंदगी का मैं,
सोचता हूँ एक और मांग कर देखूं।
है वैसे तो मुश्किल तुम्हे भूल जाना मगर,
सोचता हूँ इसको भी एक मौका देकर देखूं।
था मैं भी कुछ बदनसीब के बस खुशियाँ ही मांगी दुआओं में,
अब सोचता हूँ कुछ और ग़म मांग कर देखूं।
सही लिखा है आपने। यदि जीवन में गम नहीं होंगे तो खुशियों का अहसास कैसे होगा। सुख और दुख के मधुर मिलन से ही तो जीवन परिपूर्ण होता है।
जवाब देंहटाएं^यूँ तो देख चुका हूँ हर दर्द जिंदगी का मैं,
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ एक और मांग कर देखूं।^
जिन्दगी की सच्चाई को बहुत खूबसूरती के साथ आपने शेर के रूप में पिरो दिया है। बधाई।
achcha likha hai...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति, नदीम भाई!
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