कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
बुधवार, 9 जुलाई 2008
जब चेन, चैन न लेने दे!
यार कभी- कभी ऐसा सीन होता है जो कभी शर्मिंदा और कभी मज़ाक बनने का सबब बना देता है. मगर ऐसे में बंदा कर कुछ नही सकता और ख़ुद भी औरों के साथ हंसने लगता है और अपनी मज़ाक उडाने लगता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ जब अचानक दफ्तर में मेरी पेन्ट की जिप यानी चेन ख़राब हो गई। अब क्या करता एक साथी ने आकर कहाँ " भाई क्या बात है आजकल गर्मी ज़्यादा लग रही है जो खिड़कियाँ खोल राखी हैं '' .और इशारे से बताया की क्या हुआ है असल में। अब में क्या कहता मैंने भी थोडी हाज़िर जवाबी दिखाते हुए अपनी शर्ट पेन्ट से बाहर निकाल ली और कहा " अरे यार तुम्हे पता चल गया मैं तो सोच रहा था कि चुपचाप हवा खाने के बाद खिड़की बंद कर लूँगा।" मगर सच्चाई क्या थी ये तो मैं जानता ही था। दिन भर शर्ट बाहर करके घूमता रहा और शाम को जल्दी घर आने का बहाना बनाया। और घर आकर चैन ली। और सोचा यार ये चेन, चैन क्यूँ नही लेने देती।
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