मैं सोचता रहा वजह उनके जाने की,
और बैठा रहा उनका ख़याल लिए,
यूँही शब् गुजरी और अगला दिन निकल आया.
आँखों में नींद की बैचेनी थी मुझे महसूस,
मगर फिर भी मन नही माना के सो जाऊँ,
अरे सोता कैसे इन्तेज़ार जो था,
फिर से शाम के आने का।
इसी इन्तेज़ार में शाम भी चली आई,
और हम भी चल दिए उनकी यादों के गट्ठर को लिए,
फिर जा बैठे उसी जगह पर जहाँ कल उनसे मिले थे,
नज़रें गडी हुई थीं उनकी राहों में,
और फिर कल के खूबसूरत से ख़याल आने लगे,
फिर महसूस होने लगी खुशबू उनकी,
फिर घड़ी देखी और पाया,
वक़्त तो अब हुआ है उनके आने का,
फिर उसके बाद भी घंटों गुज़रे,
फिर दिन गुज़रे,महीनो और अब साल होने वाला है,
मगर इंतज़ार फिर भी बाकी है,
यूँही बैठा हुआ हूँ उनकी यादों के गट्ठर को समेटे हुए,
और सोच रहा हूँ, वजह उनके जाने की।
यूँही बैठा हुआ हूँ उनकी यादों के गट्ठर को समेटे हुए,
जवाब देंहटाएंऔर सच रहा हूँ, वजह उनके जाने की।
--आह्ह!! वाह! क्या बात है, बहुत खूब!!
मरने के बाद भी, मेरी आँखें रहीं खुली,
आदत पड़ी हुई थी उन्हें इन्तजार की.