सोमवार, 7 जुलाई 2008

ग़म की खुमारी में ! हाल ऐ दिल!

ग़म की खुमारी में यूँही चलता जा रहा है वो,
और करता है ये दुआ कि कोई खुशी अब न मिले।
यूँही तन्हा चले ये सफर जैसे भी, जो भी हो,
अब इस सफर में साथी फिर कोई और न मिले।

होता रहे यूँही उसकी खुशी का चर्चा,
उसके दर्द की भनक भी किसीको न मिले।

करते रहें यूँही परेशां, उसे परेशां करने वाले,
उनको परेशां करके और भी खुशी मिले।

मैं चाहूँ भी तो उसके जैसा बन नही सकता,
मुझे इस तरह के लोग बहुत कम मिले।

होता हैं यूंतो वक़्त का गुलाम आदमी,और सोचता है कैसे,
वक़्त को गुलाम बनाने का हुनर का मिले.

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