है ये सफर ग़मगीन सा, रस्ता भी क्या मंज़िल भी,
चलता रहा हर दम यूँही, रस्ता भी क्या मंज़िल भी क्या।
होता रहा सफर यूँही तमाम, हर एक लम्हा हर एक पल,
मैं सोचता रहा यूँही बस, घर था कहाँ, और मंज़िल कहाँ?
था जिनके दम पर चलना मुझे, वो चल दिए यूँ छोड़कर,
जैसे के था मैं अजनबी, जो साथ उनके चलता रहा।
उम्मीद न करना किसी से ऐ यश, वो दोस्त हो या यार हो,
सब चल रहे हैं तन्हा यहाँ, बाकी नही रिश्ता रहा।
यूँ ज़िन्दगी से ख़फा वो रहने लगा, जिसे ज़िन्दगी प्यार था,
करता है बातें मायूसी भरी, जो ख़ुद सदा हौसला रहा।
बहुत बढिया रचना है।बहुत बढिया कहा-
जवाब देंहटाएंउम्मीद न करना किसी से ऐ यश, वो दोस्त हो या यार हो,
सब चल रहे हैं तन्हा यहाँ, बाकी नही रिश्ता रहा।
यूँ ज़िन्दगी से ख़फा वो रहने लगा, जिसे ज़िन्दगी प्यार था,
जवाब देंहटाएंकरता है बातें मायूसी भरी, जो ख़ुद सदा हौसला रहा।
--bahut khoob.
था जिनके दम पर चलना मुझे, वो चल दिए यूँ छोड़कर,
जवाब देंहटाएंजैसे के था मैं अजनबी, जो साथ उनके चलता रहा।
yeh meri nxt post ki theme thi :)