तमाशबिनो सी हो गई है ज़िन्दगी॥
बीच रस्ते में कहीं खो गई है ज़िन्दगी॥
न कोई रास्ता न कोई मकसद दिखाई देता है॥
खानाबदोशों सी हो गई है ज़िन्दगी॥
सहरो की मोहताज बनी है ज़िन्दगी॥
अपनों का ही शिकार बनी है ज़िन्दगी॥
न कोई अपना न सहारा दिखाई देता है॥
बंजर सी हो गई है ज़िन्दगी॥
खौफनाक खवाब सी लगती है ज़िन्दगी॥
अँधेरी रात सी अब डसती है ज़िन्दगी॥
न कोई उम्मीद न रौशनी दिखाई देती है॥
रोते रोते अब तो सो गई है ज़िन्दगी॥
फूलों की चादर सी चाही थी ज़िन्दगी॥
काँटों की सेज सी पाई है ज़िन्दगी॥
न कोई महक न मरहम दिखाई देता है॥
एक कशमकश सी हो गई है ज़िन्दगी॥
दर दर भटकती है ज़िन्दगी॥
बस गमो को ही जगह देती है ज़िन्दगी॥
न कोई खुशी न मंजिल दिखाई देती है॥
बिल्कुल गैर ज़रूरी सी हो गई है जिन्गदी..
बीच रस्ते में कहीं खो गई है ज़िन्दगी॥
न कोई रास्ता न कोई मकसद दिखाई देता है॥
खानाबदोशों सी हो गई है ज़िन्दगी॥
सहरो की मोहताज बनी है ज़िन्दगी॥
अपनों का ही शिकार बनी है ज़िन्दगी॥
न कोई अपना न सहारा दिखाई देता है॥
बंजर सी हो गई है ज़िन्दगी॥
खौफनाक खवाब सी लगती है ज़िन्दगी॥
अँधेरी रात सी अब डसती है ज़िन्दगी॥
न कोई उम्मीद न रौशनी दिखाई देती है॥
रोते रोते अब तो सो गई है ज़िन्दगी॥
फूलों की चादर सी चाही थी ज़िन्दगी॥
काँटों की सेज सी पाई है ज़िन्दगी॥
न कोई महक न मरहम दिखाई देता है॥
एक कशमकश सी हो गई है ज़िन्दगी॥
दर दर भटकती है ज़िन्दगी॥
बस गमो को ही जगह देती है ज़िन्दगी॥
न कोई खुशी न मंजिल दिखाई देती है॥
बिल्कुल गैर ज़रूरी सी हो गई है जिन्गदी..
फूलों की चादर सी चाही थी ज़िन्दगी॥
जवाब देंहटाएंकाँटों की सेज सी पाई है ज़िन्दगी॥
न कोई महक न मरहम दिखाई देता है॥
एक कशमकश सी हो गई है ज़िन्दगी॥
वाह बहुत अच्छी रचना बधाई हो काबिलेतारीफ
बहुत सुन्दर रचना है।अपने नजरिए को बखूबी बयां किया है-
जवाब देंहटाएंतमाशबिनो सी हो गई है ज़िन्दगी॥
बीच रस्ते में कहीं खो गई है ज़िन्दगी॥
न कोई रास्ता न कोई मकसद दिखाई देता है॥
खानाबदोशों सी हो गई है ज़िन्दगी॥
सुन्दर रचना..
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