फ़साना ज़िन्दगी का ये ही बन गया है अब,
के दाग भी दिया और बेदाग भी हो गए।
मेरे महबूब तेरी भी ये खूब रही,
के इत्मिनान से ख़ुद ही फना हम हो गए।
ज़रा सोचकर तो देखा होता,
ये बात क्या अपना ही दिल तोड़ गए।
हुज़ूर ज़रा अह्तामाम ज़िंदगी का भी कर लो,
ये क्या के मौत का खौफ ही भूल गए।
मुस्कुराकर मेरे महबूब की बात की उसने,
और हम थे उन्ही के नाम से अनजान हो गए।
पत्थर भी हमेशा नही रहता ऐ दोस्त,
तुम तो इंसान हो क्यों फिर भी पत्थर हो गए।
नदीम भाई इन सुन्दर शेरो के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर, बधाई.
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