शनिवार, 29 मार्च 2008

क्या हिन्दी मीडिया में हम तंग्दस्ती से गुज़र रहे हैं?और अंग्रेज़ी मीडिया बहतर कैसे?

मैं जब भी कभी हिन्दी न्यूज़ चैनल के बाद अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल्स देखता हूँ तो सोचने को मजबूर हो जाता हूँ की शायद हमारे देश में सबसे ज्यादा तजुर्बेकार लोग हिन्दी मीडिया से ही जुड़े हुए हैं मगर अंग्रेज़ी मीडिया कैसे हिन्दी से बहतर चल रही है। कोई भी आसानी से इस अन्तर को देख सकता है कि जहाँ हिन्दी खबरिया चैनल्स को ख़बरों कि कंगाली रहती है और वो इसके आलावा काफ़ी कुछ ख़बर के नाम पर दिखाते हैं वहीं इन्हीं के संगठन के अंग्रेज़ी चैनल्स कैसे बहतर खबरें दिखा पा रहे हैं? आपको अंग्रेज़ी चैनल्स देखते हुए काफ़ी कुछ खबरें मिल जाती हैं वही हिन्दी चैनल्स पर कुछ मिले न मिले हाँ आप सांप, बिच्छू, भविष्य, जादू, आदि ज़रूर सीख जायेंगे। वही अंग्रेज़ी चैनल्स पर ऐसा बहुत कम लगता है। वहीं अगर भाषा कि बात की जाए तो भी खबरिया भाषा अंग्रेज़ी में काफ़ी हद तक बहतर रहती है।
अंग्रेज़ी मीडिया का स्तर हम कह सकते हैं कि विश्व स्तर का है वही अभी हिन्दी में शायद हमने और वक्त लगेगा। आए दिन नए नए खबरिया चैनल्स शुरू हो रहे हैं वहीं हर बार ये वादा किया जाता है कि ख़बर वापस आ गई है और फिर वही धाक के तीन पात। और जो लोग इस विषय पर बाज़ार का रोना रोते हैं क्या ये रोना अंग्रेज़ी चैनल्स पर लागू नही होता। अक्सर हम लोग जब भी खबरिया चैनल्स कि बात करते हैं तो येही लगता है कुछ गड़बड़ ज़रूर है मगर ये गड़बड़ मुझे लगता है केवल हिन्दी में ही है।

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