रविवार, 23 मार्च 2008

फ़िल्म ब्लैक & व्हाईट : कुछ हकीकत कुछ फ़साना पर ज़रूरी था दिखलाना!

कल फ़िल्म ब्लैक & व्हाईट देखी, बड़े दिन बाद एक अच्छी फ़िल्म देखने को मिली जहाँ दिमाग पर ज़ोर डालने का मौका मिला। वैसे तो सभी जानते हैं कि आजकल दिमाग पर ज़ोर daalne वाली फिल्में बनती ही नही हैं। पर सुभाष घई साहब कि फिल्मों के साथ ऐसा नही है। हमेशा विशाल और मसालेदार फिल्में बनाने वाले सुभाष घई ने इस समय बेहद संवेदनशील फ़िल्म बनाई है। जिसमें एक आम इंसान के आतंकवादी बनने तक की कहानी दिखाई गई है। हालांकि इसमें मुख्य किरदार को ज़रूरत से ज़्यादा कट्टर दिखाई गया है जो कि थोड़ा समझ से परे है मगर बाकी सहायक लोगों की भूमिका बेहद दमदार है। जिसमें अनिल और उनकी पत्नी दोनों के किरदार बेहद संजीदगी से लिखे गए हैं और कईं बार ऐसा प्रतीत होता है कि ये दोनों ही मुख्य किरदार हैं। हाँ इसमें कई ऐसी बातें हैं जैसे साधारण नेताओ और धार्मिक संगठनों का गठजोड़ जो कि हो सकता ही कुछ लोगों को तंग करे पर ये सत्य है। हाँ इसमें बुज़र्ग शायर की भूमिका भी अहम् है जो कि हमेशा अपने देश के बारे में सोचते हैं और लिखते भी हैं। कुल मिलकर दूसरी फिल्मों से बेहद अलग है और किसी को भी बाधें रखने में कामयाब फ़िल्म है।

1 टिप्पणी:

  1. यह फ़िल्म मैंने भी देखी. मुझे यह गंभीर विषय पर बनाईं गई साधारण फ़िल्म लगी. घई साहब अच्छी कथा-पटकथा के साथ इन्साफ नहीं कर पाए. हाँ फ़िल्म का नायक प्रभावी लगा.

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