कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
गुरुवार, 6 मार्च 2008
कंप्यूटर गेमिंग : क्या हम अपने बच्चों को उग्र बना रहे हैं?
हो सकता है कि कुछ लोगों को मेरी बात सही न लगे पर क्या ऐसा नहीं लगता कि कंप्यूटर गेमिंग के नाम पर हम अपने बच्चों को उग्र बना रहे हैं? आजकल जिस प्रकार के games बाजार में उपलब्ध हैं उनको देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि बच्चे क्या सीख रहे हैं? हालांकि कि बाज़ार में कुछ अलग प्रकार के games भी उपलब्ध हैं मगर बच्चों का झुकाव ज्यादा इन games की तरफ ही है. कोई भी आसानी से इन्हें देख कर अंदाजा लगा सकता है कि बच्चे इन games को खेलते समय किस प्रकार सोचते हैं और कितने उग्र होते हैं. मेरा मानना है कि इस प्रकार के games बच्चों के दिलों से डर निकाल देते हैं और वे इन्हें घर तथा स्कूलों में खेलने की कोशिश करते हैं. ऐसा मैं यूँही नहीं कह रहा हूँ इसकी जानकारी के लिए मैं अपने घर के नजदीक बने games house में लगातार कई घंटे और दिन बिताने के बाद कह रहा हूँ. वैसे आप सोचेंगे कि मुझे ऐसा करने कि ज़रूरत क्यूँ पड़ी तो जनाब ऐसा इसलिए क्यूंकि मैंने अपने पड़ोस के कुछ बच्चों को ऐसा करते देखा था. वो एक दुसरे को इसी प्रकार मारने की कोशिश कर रहे थे और बातें भी कर रहे थे. तो अंत में मेरी यही सलाह होगी कि अपने बच्चों को अकेले खेलने न दें और यदि खेलने दें तो ध्यान दें कि वो कौनसा गेम खेल रहे हैं. और उन्हें बताएं कि इसमें क्या वास्तविक है और क्या गलत. साथ ही ये भी कि ऐसा नहीं करना चाहिए कम से कम असल ज़िन्दगी में तो बिलकुल नहीं. वरना ऐसा न हो कि जैसा आजकल हम अमेरिका में सुनते हैं कि स्कूलों में बंदूक बाजी हुई है वो कहीं भारत में न होने लगे.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
नदीम भाई आप की बात बिल्कुल ठीक हे,मां वा्प कॊ चहिये देखे बच्चे कोन सी गेम्स खेल रहे हे,हमारे जहा तो ऎसी गेम्स बाजार मे मिलती ही नही, ओर फ़िर समय भि निश्चित होना चहिये एक बच्चा १ या १/२ घण्टा गेम्स खेले
जवाब देंहटाएंडिपेन्ड्स कि कौन सागेम हम अलाऊ कर रहे हैं...शायद इनोवेटिव भी बना पायें अगर सही चयन हो तो.
जवाब देंहटाएं