कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
रविवार, 9 मार्च 2008
मुस्कराहट का इंतज़ार है इंडियन रेलवे में!
लालूजी न काफ़ी कुछ दिया रेल से सफर करने वालों को पर अभी भी एक बेहद कीमती चीज़ रह गई है जो है मुस्कराहट वो लालूजी कहाँ से देंगे? अजी में जिक्र कर रहा हूँ भारतीये रेल कर्मचारियों का। भले ही हमारी रेलवे कितनी भी सुधर जाए मगर क्या यहाँ के कर्मचारियों के चेहरों पे मुस्कराहट आयेगी? अब मुझे इसका जवाब कौन देगा। आज ही मैं अपने रिश्तेदारों को छोड़ने स्टेशन गया वहाँ पूछताछ से लेकर टिकट खिड़की और plateform तक पे बैठे हर एक कर्मचारी की ज़बान पर या तो गुस्सा था या उलझन की लकीरें। अजी कहे इतना परेशान रहते है लालूजी से कहिये न कुछ कर देंगे। अजी आपकी तो परेशानी हो गई बेचारी सवारी की जान पे बन आयेगी। अजी केवल आदमी ही परेशान हों तो समझा जा सकता है की घर पर लड़के आए होंगे याहन तो महिलाएं भी। और अगर आप की ज़बान से कुछ निकाल गया तो समझ लीजिये की आप गए कर्मचारी तो बोलेगा ही साथ में आप के पीछे खड़े बाकी लोग भी आपको नही छोडेंगे। क्यूंकि उनका समय जो बरबाद होगा आपके चक्कर में। मेरी तो लालूजी से यही कहना है की कम से कम एक जोक अपनी विशिष्ट शैली में इन्हे भेज दिया करें कम से ये लोग हंसने तो लगेंगे.
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कह दिया है..अबसे हंसा करेंगे. :)
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