तेरी तस्वीर को सीने से लगाकर रखा,
तू पास नही था मगर पास बिठाकर रखा।
न भरोसा था के तू है मेरे आस पास कहीं
मगर तेरे होने के एहसास को बनाकर रखा।
हर एक शय में नज़र आ रहा था तू मुझे
कहीं ऐसा तो नही के मैंने तुझे ख्वाब में देखा।
सितम कर ले मुझ पर तू कितना भी सनम,
तुने बस देखा है मुझे , अभी न मेरी बर्दाश्त को देखा।
ख़बर आई थी कुछ देर पहले के तू चला गया है दुनिया से,
मेरे बिन चला जाएगा तू कहीं , ये तो है दुनिया का धोखा।
नदीम भाई कया शेर कहे हे भाई , सच मे दिल मोह लिया आप ने,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढिया ।
जवाब देंहटाएंतेरी तस्वीर को सीने मे छुपाये रख्खा है क्या कहने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसितम कर ले मुझ पर तू कितना भी सनम,
जवाब देंहटाएंतुने बस देखा है मुझे , अभी न मेरी बर्दाश्त को देखा।
बहुत खूब---
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जवाब देंहटाएंग़ज़ल रिवायत का अनुशासन और बहर (मीटर) का क़ायदा गुम है आपकी इस ग़ज़ल में नदीम भाई.बुरा न माने लिखने के लिये सिर्फ़ ख़याल नहीं काव्य का व्याकरण निभाना भी ज़रूरी है. उर्दू वाले तो इस मुआमले में बहुत सतर्क रहते हैं...किसी को अपनी ग़ज़ल दिखा सकें / जँचवा सकें ऐसा कोई इन्तज़ाम कीजिये न क़िबला !(इसे उर्दू शायरी रिवायत/परम्परा में इसलाह करवाना कहते हैं)
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