कभी कभी सोचता हूँ कि ये अलग है और वो अलग। ये सही कहता है और वो सही कहता है। मगर ऐसा क्यों लगता है कि हर कोई एक जैसा ही कहता है। जब तक आप पक्ष में हैं सरकार सब अच्छा करती है और जब विपक्ष में सरकार सब ग़लत करती है। किसी की कोई नीति नही है। आप जब पक्ष में होते हैं एक नीति बना जाते हैं और आपके समय में वो सही होती है मगर जब विपक्ष में होते हैं तो उसी नीति का विरोध करते हैं। यार तंग करके रख दिया इन नेताओं ने। इनका कोई दीन ईमान नही है। दिन भर एक दूसरे को गलियाँ देते हैं शाम तो एक साथ हाथ में हाथ डाले आपको करीम पर मिल जायेंगे। अगर मैं दिल्ली में नही होता तो शायद बाकी देश कि तरह इन नेताओं को एक दूसरे का दुश्मन ही समझता मगर दिल्ली में हूँ तो इन सबको देखता रहता हूँ। पता नही ये भोली भाली जनता इनको कब पहचानेगी।
जब आप सत्ता में थे तो जंगल और नदी के पत्थरों का ठेका आपके पास था अब विपक्ष में हैं तो किसी ने अड़ंगा दाल दिया तो क्या हैं तो अपने ही दोस्त कुछ हिस्से दारी दी और ठेका फिर से चालू। बस तंग तो करना बनता है यार एक बार।
कभी कभी सोचता हूँ किसी को वोट न दूँ मगर फिर सोचता हूँ ज्यादा बुरे से कम बुरा चुन लो सही रहेगा। मगर यहाँ तो गंगा ही उलटी है अगर एक तरफ़ कोई बाहुबली खड़ा है तो सामने उससे भी बड़ा बाहुबली और अगर किसी राजनितिक दल से पूछ लिया कि आपने एक अपराधी को क्यों खड़ा किया तो जवाब मिलता है कि क्या शेर के सामने मेमना खड़ा कर दें?
यार पता नही इनका कब और क्या होगा?
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