शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

भाई खुल के कहो!

ये आजकल के शेत्रिये दल क्या चाहते हैं खुल कर क्यों नही कहते?
राज ठाकरे हमारे देश के एक बडे शेत्रिये दल से अलग होकर इन्होने अपना एक नया दल बनाया सोचा नया निर्माण होगा पर लग रह है इन्हें पता चल गया कि शेत्रिये दल नया हो या पुराना ढर्रा वही रहता है नही बदलता। उत्तर भारतीयों पर इनके विचार हों या अमिताभ बच्चन जी पे की गयी टिपण्णी इससे शेत्रियता कि बू आती है वही बू जो शायद हमारे पूर्वजों ने महसूस की थी, भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समये। आखिर ऐसे दल चाहते क्या हैं खुल कर क्यों नही कहते? एक बार फिर से बंटवारा करवाना कहते हैं क्या या चाहते हैं कि दोबारा इस देश में दंगे भड़क जाएं जैसे पहले धरम और शेत्रियता के नाम पर पहले भी भड़क चुके हैं। इन्हें कब समझ आयेगा कि भारत एक बड़ा देश हैं जहाँ विभिन्न धर्म के लोग हैं, विभिन्न राज्य हैं। इस देश में कोई भी कभी भी, कहीं भी आ जा सकता है। ये लोग क्या चाहते हैं ? ैं कि हम बाक़ी भारत के लोग इनके राज्य में न आयें? या ये ऐसा सिर्फ अपने राज्य के लोगों को खुश करने मात्र के लिए कर रहे हैं। शायद ये लोग नही जानते कि यदि उत्तर भार्तिये न हों तो इन बडे शहरों में सभी बुनियादी सुविधाओं का अभाव हो जाएगा। ये लिओग क्या कर रहे हैं? क्या कहते हैं? लोगों को समझायें तो सही। और अगर ये लोग अपने इलाके को बाक़ी भारत से काटना चाहते हैं तो भूल जाएं ऐसा नही होगा। इन लोगों को चाहिऐ कि खुद भी सुख से रहे और बाक़ी लोगों को भी रहने दें। हम भारत के नागरिक हैं किसी दिल्ली, किसी मुम्बई , किसी कोलकता के नही हैं। हम सभी एक ही राष्ट्रिये गान तथा राष्ट्रिये गीत गाते हैं।जिसमें हमें बताया गया है कि हिन्दी हैं कि हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा। इन लोगों को एक बार फिर से राष्ट्र गान तथा राष्ट्रिये गीत का मतलब समझाना पड़ेगा क्यूंकि ये लोग भूल गए हैं अपनी ओछी राजनीती के कारण .

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