कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
बुधवार, 30 जनवरी 2008
अब क्या करें अपनी नाक तो रखनी ही है न.
जैसा की कल हमने बताया था कि भाई हरभजन बच गए हैं। कितनी अच्छी खबर सुनाई थी न हमने। अब बताओ इन अग्न्रेजों से ये भी हज़म नही हो रह है। अगर हरभजन बच ही गए तो कोई बताये बचे कैसे? कुछ लोग कह रहे हैं कि हमारे क्रिकेट बोर्ड ने अपने पैसे के दम पर बचाया है। वैसे अगर बचाया भी है तो क्या? हमने तो पाहे शराफत से कहा था न जब brad होग्ग पर से हमने अपने आरोप वापस ले लिए थे तभी मान जाते। पर नही ये तो sochte थे हम केवल गाँधी के ही देश के नागरिक हैं, वो कुछ भी करेंगे हम मान लेंगे। लेकिन वो लोग भूल गए यहाँ केवल गाँधी ही नही, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और भगत सिंह भी पैदा हुए हैं। जो प्यार से नही मानते बदला भी लेना जानते हैं और अपनी बात मनवाना भी।
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