गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

मैंने अपने भाई को नही मारा!

कल फिर से भारत के राजनीतिक इतिहास में नाटक खेला गया।
जिसके नायक थे राज ठाकरे और सह नायक थे राज्य के मुख्यामानरी।
पर जो मारा गया उसका क्या कसूर था उसे न तो रोज़गार की तलाश थी और न ही अपने राज्य में रहने वाले लोगों से शिकायत ही।
पर मारा कौन गया वही जिसकी अस्मियता के लिए इतना शोर हो रहा है।
चलिए इसी बात पर विचार क्यों न हो जाए की हमारा एक मराठी भाई क्यों मारा गया।
हुआ ये की लोग अपने नेता की गिरफ्तारी को लेके परेशान हो गए और उन्होंने एक बस को निशाना बनाया लेकिन हुआ क्या उनको कैसे पहचान होती की बस में मराठी है या पर्प्रन्तिये अजी पता चले भी तो कैसे मराठी व्यक्ति का रंग क्या अन्य भार्तिये लोगों से अलग होता है, या उसके बाल अलग होते हैं, या उसका अंदाज़ अलग होता है। हम सभी भार्तिये लोग दिखने में एक जैसे ही लगते हैं भले ही भाषा हमें अलग करती हो, यही कर्ण था की मनस के लोग धोखा खा गए अब उन्हें समझ जाना चाहिए की वो लोग अलग नही हैं अगर अब भी वो लोग इसी तरह हमले करते रहेंगे तो कहीं न कहीं अपना ही कोई भाई ही उसकी चपेट में आ जाएगा । अगर करना ही है तो देश के दुश्मनों के खिलाफ कुछ करना होगा। अगर करना ही है तो ऐसा करिएँ जिससे देश का कुछ भला हो जाए न की देश टूटने लगे.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails