कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
जब दुखी हों, अकेले हों या उदास हों तो लिख डालें!
कल मैं किसी बात से दुखी, अकेला, उदास सा बैठा हुआ कुछ सोच रहा था कि ख्याल आया। ऐसी हालत में क्या करना चाहिए? और ये सवाल मैंने अपने गूगल सर्च इंजन में डाला, कईं जवाब मिले और एक जवाब पर आकर नज़र ठहर गई उसमें लिखा था कि यदि आप उदास है, दुखी हैं, अकेले या depressed हैं तो अकेले न रहे और यदि अकेले रहना पड़ जाए तो लिखने कि कोशिश करें, जो कुछ भी आपके मन में चल रहा है। इस से आपके मन का बोझ हल्का हो जाएगा।वरना कहीं ऐसा न हो के दुःख या डिप्रेशन में आप कोई ग़लत कदम उठा लें। मुझे ये पढ़कर अपने कईं सवालों का जवाब मिल गया। आखिर ये ब्लॉग भी तो मैने तब ही शुरू किया था कि जब में अपने दिल कि बातों को किसी से कह नही पाता था। आज मेरे पास कहने के लिए एक पन्ना है। जिसपर में लिखकर अपनी बातें छोड़ देता हूँ ताकि मन हल्का हो जाए और फिर से अपने काम पर जुट जाता हूँ। इससे काम में मन भी लगा रहता है और यदि किसी बात पे गुस्सा आए भी तो उतर भी जाता है।साथ मे अपने जैसे ब्लॉगर साथी लोग मिल जाते हैं जो इसमें साथ दे देते हैं। मैं और लोगों से कहना चाहता हूँ की वो लोग भी लिखें.
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दोस्त नदीम, बड़ा अच्छा नुस्खा मिला है आपको। असल में दुखी और उदास रहने पर मन बड़ा नम सा रहता है। इसलिए मन की इन नमी से बहुत गहरी बातें निकल सकती हैं। तो जब भी उदास हों, दुखी हों, फौरन कंप्यूटर पर बैठकर उंगलियां चला लिया कीजिए। आप तो उदासी से निकल ही आएंगे, हम जैसे दूसरों को भी गहरे अनुभव जानने को मिल जाएंगे।
जवाब देंहटाएंनदीम बिल्कुल सही कह रहे है आप।
जवाब देंहटाएंबात तो शत-प्रतिशत सही है।
जवाब देंहटाएंright brother
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