सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

जब काम समझ में न आए. तो क्या कपड़े फाड़ने लगें?

अब क्या करें? जब कुछ काम न हो तो सुना है की इंसान को चाहिए की अपने कपडे फाड़ने लगे और उसे सीने लगे. खाली बैठा था तो सोचा आज का सारा दिन हो गया कुछ खास काम भी नहीं तो क्या करना चाहिए अचानक ये बात दिमाग में आ गयी जो मैंने अपने गाँव में किसी के मुह से सुनी थी. ये वाहाँ की आम कहावत अहि जो की ताना मारने के लिए या मज़ाक में कही जाती है. बात का ध्यान आना था की हंसी छूट गयी साथ में बैठे साथी पोछने लगे की भाई क्यूँ हंस रहे हो. क्या बताता की एक अजीब से कहावत याद आ गयी है. फिर सोचा इसे लिखे छोड़ता हूँ शायद ऐसी कुछ और धारणाएं सुनाने को मिल जाएं. आप का क्या ख्याल है.

1 टिप्पणी:

  1. हमारे यहाँ कहते हैं:

    खाली बनिया क्या करे..इस कोठी का धान उस कोठी...उस कोठी का धान इस कोठी... :)

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails