कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
ओरकुट और मैं! जिसने मुझे दोबारा मेरे दोस्तों से मिलाया!
आज कल कईं जगह पढने और सुनने को मिल जाता है की ओरकुट की वजह से काफ़ी समस्याये आ रही हैं। हो सकता है ! मगर आज भी मैं जब उस दिन को याद करता हूँ जब मेरा फ़ोन ख़राब हो गया था और सारे दोस्तों के फ़ोन नम्बर मुझसे खो गए थे। उस समय मैं कितना अकेला हो गया था। वाकई में बिना दोस्तों के ज़िंदगी कितनी अधूरी हो जाती है। वैसे भी आजकल लोगों के पास टाइम ही कहाँ होता है जो की एक दूसरे से मिल सकें वही हम लोग फ़ोन मिलकर एक दूसरे से बात तो कर लेते हैं। तो जब मेरे पास से फ़ोन नम्बर खो गए तब मुझे ओरकुट पे अपनी आई डी बनानी पड़ी। और ओरकुट में सर्च करके में अपने लगभग सभी दोस्तों तक पहुँच पाया । आज भी मैं जब भी लोगिन होता हूँ अपने दोस्तों से आसानी से बात कर पता हूँ। कभी भी कहीं भी। इसके लिए मैं ओरकुट का धन्यवाद करना चाहता हूँ। अब नुकसान और फायेदा तो हर चीज़ के साथ जुडा हुआ है। ये आप पर निर्भर करता है की आप फायेदा लेना चाहते है या उसका ग़लत इस्तेमाल करके नुकसान।
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हम आप की बात से एक्दम सहमत हैं, ऑर्कुट ने हमारी भी दुनिया ही बदल कर रख दी।
जवाब देंहटाएंसत्यवचन!
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