कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
रविवार, 17 फ़रवरी 2008
भाई पहली टिपण्णी पे कैसा लगता है?
अभी अपना ब्लोग शुरू किये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है। पर लिखने के बाद हमेशा सोचता था. की में जो लिखता हूँ क्या वो सही है.क्यूंकि इंसान को अपनी गलतियां खुद पता नहीं चलती. ऐसा मेरे साथ भी हुआ और मुझे पहली टिपण्णी मिल गयी और पता चला की मेरी लिखी या बताई गयी बात शायद मेरे साथियों को समझ नहीं आई॥और कल जो मैंने लिखा उसके बारे में साथियों ने मेरा साथ दिया. और मेरी कमियों को बताया भी..इससे वाकई में उत्साह बढ़ता है... बहरहाल मेरी गलतियां बताने के लिए धन्यवाद.
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नदीम जी,कसम खुदा की, यहां हिंदी बलोगिरी में सही-गलत का तो कोई चक्कर ही नहीं है। यह तो नदीम भाई आप का अपना स्पेस है, जो दिल कहे उसे बलोग में उतार कर हल्का हो लो। अगर भाई यहां भी गल्त सही के चक्कर में पड़ गये न तो फिर हम सब कहां खुल कर अपने मन की बात कह पायेंगे। यह तो माध्यम ही इतना सशक्त है कि हम अपनी बात सारे संसार के आगे रख रहे हैं। बस लिखते रहा करें। और हां, अपने संघर्षमय जीवन से क्या क्या सीखा....सब से साथ दिल खोल कर बांटिए। टिप्पणी का क्या है, सब से ग्रेट टिप्पणी तो हमारा मन हमें देता है। सो ,इसलिए बिल्कुल बेझिझक होकर सब कुछ हम जैसे बंधुओं के आगे रख कर पहले हल्का हो जाइए, फिर असली लेखन शुरू होगा।
जवाब देंहटाएंआप के बारे में जान कर अच्छा लगा। आप खुद अपने पैरों पर खड़े होने वाले लोगों में से हैं। यानी खुदा की पहली पसंद की सूची में दर्ज। आप लिखते रहिये। हम पढ़ते रहेंगे। कभी कुछ कहना हुआ तो बेझिझक कहेंगे।
जवाब देंहटाएंअवश्य बताया जायेगा..लिखते रहें. अनेकों शुभकामनायें.
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