कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
एकता कुत्तों की और इंसान के नाते मेरी जलन!
आज जब में घर से निकला तो देखा की किसी न एक कुत्ते को गलती से छेड़ दिया और उस एक कुत्ते की आवाज़ सुनकर मुहल्ले के सभी कुत्ते इकठ्ठा हो गए और उस व्यक्ति का पीछा तब तक नही छोड़ा जब तक की उस व्यक्ति न गली नही छोड़ दी। ये सब देख कर मुझे पता नही क्यों जलन होने लगी। जब ऐसा जानवर लोगों के साथ हो सकता है तो इंसान होने के नाते हम इंसान लोग एक - दूसरे को रास्ते पर पिटता हुआ, तड़पता हुआ छोड़ देते हैं। अगर कहीं हम देखते हैं कि कोई किसी इंसान को मार रहा होता है तो हम अपना रास्ता बदल लेते हैं , कि कहीं हम भी इस लड़ाई की चपेट में न आ जाएं, और कहीं हम भी न फँस जाएं। अगर कहीं किसी का एक्सीडेंट हो जाता है तो भी हम कट लेते हैं कि यदि हम रुके तो हो सकता है इस व्यक्ति को हमें ही हस्पताल ले जन पड़ेगा और अगर पुलिस केस हो गया तो और फँसे। जब कुत्तों में इतनी एकता हो सकती है कि वो बिना किसी जान पहचान के एक दूसरे की आवाज़ सुनकर एक दूसरे की मदद के लिए आ सकते हैं तब हम लोग किस तरह एक दूसरे को तड़पता हुआ छोड़ देते हैं। क्या हमारा कोई कर्तव्य नही बनता कि एक दूसरे कि मदद करें।
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भई ये तो आपने बहुत पते की बात कह दी, बहुत ही बेह्तरीन पोस्ट
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