शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

दोस्तों मुझे मुबारकबाद दो- आज फिर मेरी चप्पलें चोरी हो गई!

लो भाई आप भी सोचोगे की ये किस चीज़ की मुबारकबाद मांग रहा है। अजी क्या कहूँ जब उपरवाला देता है या लेता है तो उसका धन्यवाद तो कर ही लेना चाहिए और वैसे भी ये भी तो एक तोप्गी ही तो होगी की एक ही साल में कईं चप्पलें चोरी होना वो भी एक ही इंसान की। अजी अब तो मैंने गिनना भी बंद कर दिया है। सोचा था मस्जिद में नमाज़ अदा कर आया जाए और चप्पलें पहन कर चले गए फिर क्या वही हमेशा की कहानी हमने तो होशियारी dikhayi की चप्पलें लेकर मस्जिद में रख दी , चोर भाई साहब हमसे भी ज़्यादा होशियार अन्दर से ही हाथ साफ कर गए। अजी हमतो खड़े थे की कब मस्जिद खाली हो और हम कोई टूटी फूटी चप्पल पहन कर घर चले जायें क्यूंकि इस बार नंगे पैर जाने का मन नही हो रहा था, वरना हमेशा की तरह इस बार भी मुहल्ले वालों को हंसने का बहाना मिल जाता। पर भला हो मस्जिद के मु अज्ज़म साहब का जो मिल गए और उन्होंने हमें इजाज़त दे दी कि सामने जो २ पट्टी की चप्पलें पड़ी हैं उन्हें ही पहन कर चले जाईये सो हमने भी देर नही की और मौके का फयेदा ही उठाने में भाल्यी समझी और फौरन मु अज्ज़म साहब की दी हुई चप्पलें लीं और घर का रास्ता पकड़ा। वैसे मजे की बात ये भी है कि शायद आज अपनी नीयत ही चप्पलें चोरी करवाने की थी क्यूंकि मस्जिद में दाखिल होने के बाद हम सोच ही रहे थे की आज अगर चप्पलें चोरी हो गई तो इसी बात पर लिखेंगे। हमें क्या पता था कि ख़ुदा ने यही मौका दिया है दुआ को कबूल करवाने का। वरना कुछ और ही न सोच लेते। वैसे अब ये बात नही रही किसी न किसी की कभी न कभी मन्दिर में या मस्जिद में चप्पलें चोरी हो ही जाती हैं। वो तो शुक्र हो कि अब हमने कमाना शुरू कर दिया है वरना घरवालों से ताना मिलता कि महनत से कमाओ और इनको चप्पलें लाकर दे दो.

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

ओरकुट और मैं! जिसने मुझे दोबारा मेरे दोस्तों से मिलाया!

आज कल कईं जगह पढने और सुनने को मिल जाता है की ओरकुट की वजह से काफ़ी समस्याये आ रही हैं। हो सकता है ! मगर आज भी मैं जब उस दिन को याद करता हूँ जब मेरा फ़ोन ख़राब हो गया था और सारे दोस्तों के फ़ोन नम्बर मुझसे खो गए थे। उस समय मैं कितना अकेला हो गया था। वाकई में बिना दोस्तों के ज़िंदगी कितनी अधूरी हो जाती है। वैसे भी आजकल लोगों के पास टाइम ही कहाँ होता है जो की एक दूसरे से मिल सकें वही हम लोग फ़ोन मिलकर एक दूसरे से बात तो कर लेते हैं। तो जब मेरे पास से फ़ोन नम्बर खो गए तब मुझे ओरकुट पे अपनी आई डी बनानी पड़ी। और ओरकुट में सर्च करके में अपने लगभग सभी दोस्तों तक पहुँच पाया । आज भी मैं जब भी लोगिन होता हूँ अपने दोस्तों से आसानी से बात कर पता हूँ। कभी भी कहीं भी। इसके लिए मैं ओरकुट का धन्यवाद करना चाहता हूँ। अब नुकसान और फायेदा तो हर चीज़ के साथ जुडा हुआ है। ये आप पर निर्भर करता है की आप फायेदा लेना चाहते है या उसका ग़लत इस्तेमाल करके नुकसान।

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

एक ही दिन में सबसे ज़्यादा भरती और प्रोमोशन्स- इट हप्पेंस ओनली इन इंडिया!

भले ही आप यकीन माने या न माने भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ एक ही दिन में सबसे ज़्यादा भरती हुई तथा एक ही दिन में सबसे ज़्यादा पदोन्नति और वो हुआ है लालू के रेलवे में जहाँ लालू न एक ही दिन में हजारों लाइसेंस धारी कुलियों को ४थे दर्जे के पद पर बैठा कर गैंग मैन बना दिया और हजारों गैंग मैन लोगों को भी पदोन्नत कर दिया। क्या कोई और देश ऐसा है जहाँ कभी ऐसा किया गया हो? भले ही लोग रेल बजट की बुराई या तारीफ कर रहे हों पर इस ओर बहुत ही कम लोगों का ध्यान गया है की लालू जी ने क्या किया। भले ही लोग इसको चुनावी रेवड़ी कहें पर ये क़दम उन हजारों लोगों के लिए जीवन सुधारने वाला क़दम है , अब उन्हें कोई कुली नही बुलाएगा और न ही उन्हें अब पैसा कमाने के लिए लोगों का बुझा उठाना पड़ेगा। वे लोग तो अब लालूजी को अपना देवता मनाने लगे ही होंगे। सही कहूँ यदि अगर में कुलियों की नज़र से देखूं तो ये क़दम एक सपने के सच होने जैसा ही है। जहाँ लोग रेलवे की मामूली सी नौकरी पाने के लिए दुनियाभर की महनत करते हैं वहीं इन लोगों को लालूजी ने उपहार में दे दिए। इससे रेलवे में पड़े खाली पद भी एक ही झटके में भर गए ओर साथ ही लोगों का भला भी हो गया। जय हो लालू जी की ! सच में लालू को लोगों का दिल जीतना अच्छी तरह से आता है। अब भले ही लोग उनके बारे में कुछ भी कहें।

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

स्कूल का फ्येर्वेल ( school farewell)- वो सुहानी यादें!

कल मेरे पास कुछ कक्षा १२ के बच्चे आए जो की काफ़ी थके हुए थे। उन्ही में से एक लड़की बताने लगी की आज हमारे स्कूल में farewell मनाया गया। उनकी आँखों में अजीब सी उदासी झलक रही थे। वो मुझे बताने लगे की कैसे जब स्कूल के अध्यापक उनको टीका लगाकर आशीर्वाद दे रहे थे तो उनकी आंखों में नमी सी आ गई। सचमुच वो जगह छोड़ना जहाँ आपने अपनी ज़िंदगी के कई साल गुजारे हों बहुत भावुक कर देता है।जब आप पलट कर अपने उस स्कूल को देखते हैं जहाँ आपका आना कुछ दिन बाद बंद हो जाएगा तो आप की आंखों के सामने से सारी पुरानी यादें गुज़र जाती हैं। कि किस तरह आपने प्रवेश लिया किस प्रकार शुरू में आपको स्कूल के वातावरण में घुलने- मिलने में दिक्कत हुई और आज जब आप इसका एक अंग हैं तो आपको इसको छोड़कर जाना होगा। सचमुच ये सब लिखते हुए मेरी ऑंखें भी नम हो गई हैं। वाकई क्या दिन होते हैं वो जब आप अपने स्कूल में मस्ती करते हैं। अपने साथियों के साथ में खेलते हैं और बाकी लोगों को तंग करते हैं, और कभी - कभी अपने अध्यापकों की नक़ल भी उतारते हैं। जिसे अध्यापक जानते हुए भी नज़र अंदाज़ करते हुए निकल जाते हैं। मुझे आज भी याद है जब में कक्षा आठ में था और कक्षा का मोनिटर था, उस दिन उस ३-४ पेरीओड में कक्षा में कोई अध्यापक नही था, में अपने कुछ काम पूरे कर रहा था, और कक्षा के बाकी बच्चे शोर मचे रहे थे, इतने में एक बच्चा आया और बोला के शोर मत करो प्रिंसिपल आ रहा ,इतने में प्रिंसिपल उसके ठीक पीछे आके खड़े हो गए और बोले प्रिंसिपल आ नही रहा है प्रिंसिपल आ गया है। ये सुनकर सारे बच्चे शर्मिंदा भी हुए और मन ही मन हंसने भी लगे की ये क्या हो गया। उस दिन कोई भी बच्चा फिर कक्षा से बाहर नही निकला। और जब हम स्कूल छोड़कर जाने वाले थे हमारे साथ ऐसी कई यादें थीं। जिनको याद करके आज भी मन भर अत है और हां खुश भी होता है। कितनी बदल जाती है ज़िंदगी स्कूल के बाद। काम , करियर और परिवार जिम्मेदारियों के साथ। पर क्या कहें यही ज़िंदगी है। मैंने उन सभी बच्चों के साथ अपनी यादें भी बांटी aur उन्हें कुछ exam टिप्स भी दिए।

इस मौके पर मुझे अली हैदर का वो गाना याद आता है
की 'पुरानी जींस और गिटार'

सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

चलो अब हमने भी ग़रारे कर लिए, अब हम भी गायक हो ही गए!

जैसे जैसे आजकल नए -नए गायक आते जा रहे हैं मैंने भी सोचा मैं भी ग़रारे कर के गायक बन ही जाऊँ। पहले कहा जाता था की सालों लग जाते हैं गायक बनने में मगर आजकल जैसे-जैसे गायकों की संख्या बढ़ रही है लगता है बाढ़ सी आ गई है। एक बार गुलाम अली साहब को कहते सुना था की हमने गाना सीखने में कईं साल बिताये हैं। मगर आजकल लगता है जिस प्रकार टी वी के कार्यक्रम बन रहे हैं एक दिन सारा देश ही गायक बन जाएगा। कईं बार तो ऐसा लगता है की गाने वाला केवल ग़रारे करके ही आ गया है। न तो उसने कोई तालीम ही ली है और न ही रियाज़ में वक्त लगाया है। और यदि निजी एलबम उठा के देख ली तो ये बात तय है की आप अपना सर धुन लेंगे। वहाँ तो लगता है हर पैसे वाला ही गायक बन गया है। खासतौर पे पंजाबी में। पहले हमारे गुरदास मान, हरभजन मान, दलेर महंदी जैसे दिग्गज दिखाई देते थे वही अब पता नही कौन कौन। वो भी अपने फ़ोन नम्बर के साथ। के जनाब एलबम आते ही शो के लिए बुला लीजिये। तो भाई जब इतनी मारा मारी है तो भाई हमने भी ग़रारे कर लिए हैं अब तो हम भी गायक बन ही गए हैं।

न होता मैं तो क्या होता? शिकवा ज़िंदगी से! मिर्जा ग़ालिब

आज फिर से उदास होने का मौका मिला लेकिन जैसा मैंने पहले भी लिखा था की जब मन उदास होता है तो लिखने बैठ जाता हूँ और जब खुश होता हूँ तो लिख देता हूँ।
तो इस मौके पर मिर्जा ग़ालिब की कुछ पंक्तियाँ याद आ गई सोचा लिख लूँ।

न था कुछ -मिर्जा गालिब

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता।
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता

हुआ जब ग़म से यूं बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटाने का
न होता गर जुदा तन से ज़ानों पर धारा होता।

हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया , पर याद आता है।
वो हर पार पर कहना, यूं होता तो क्या होता।

एकता कुत्तों की और इंसान के नाते मेरी जलन!

आज जब में घर से निकला तो देखा की किसी न एक कुत्ते को गलती से छेड़ दिया और उस एक कुत्ते की आवाज़ सुनकर मुहल्ले के सभी कुत्ते इकठ्ठा हो गए और उस व्यक्ति का पीछा तब तक नही छोड़ा जब तक की उस व्यक्ति न गली नही छोड़ दी। ये सब देख कर मुझे पता नही क्यों जलन होने लगी। जब ऐसा जानवर लोगों के साथ हो सकता है तो इंसान होने के नाते हम इंसान लोग एक - दूसरे को रास्ते पर पिटता हुआ, तड़पता हुआ छोड़ देते हैं। अगर कहीं हम देखते हैं कि कोई किसी इंसान को मार रहा होता है तो हम अपना रास्ता बदल लेते हैं , कि कहीं हम भी इस लड़ाई की चपेट में न आ जाएं, और कहीं हम भी न फँस जाएं। अगर कहीं किसी का एक्सीडेंट हो जाता है तो भी हम कट लेते हैं कि यदि हम रुके तो हो सकता है इस व्यक्ति को हमें ही हस्पताल ले जन पड़ेगा और अगर पुलिस केस हो गया तो और फँसे। जब कुत्तों में इतनी एकता हो सकती है कि वो बिना किसी जान पहचान के एक दूसरे की आवाज़ सुनकर एक दूसरे की मदद के लिए आ सकते हैं तब हम लोग किस तरह एक दूसरे को तड़पता हुआ छोड़ देते हैं। क्या हमारा कोई कर्तव्य नही बनता कि एक दूसरे कि मदद करें।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

आई पी एल में पैसों की बरसात- इंसान अपने दुःख से कम दूसरे के सुख से ज़्यादा दुखी !

अरे भाई अगर आई पी एल में खिलाड़ियों के ऊपर पैसों की बरसात हो रही है तो बाकी लोग क्यों शोर मचा रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे की लोग अपने दुःख से कम औरों के सुख से ज़्यादा दुखी है। अरे भाई धोनी को शुरू में अगर ६ करोड़ मिल भी जायेंगे तो क्या हो जाएगा किसीका? अगर कोई कमा रहा है तो कमाने दो क्यों दुखी होते हो। अगर इतने पैसे लेंगे तो खेलकर चुकायेंगे भी तो वरना बाज़ार अपने आप उनकी कीमत नीचे कर देगा। जिसे देखो आज कल यही बात कर रहा है जहाँ जाओ इसी बात का ज़िक्र चल रहा है। खासतौर पर हमारे पूर्व खिलाड़ी। अरे भाई आप के ज़माने में पैसे नही मिलते थे तो उस ज़माने के खिलाड़ियों की हालत आज अच्छी नही है। इन खिलाड़ियों को पैसे मिल रहे हैं कम से कम ये लोग तो अपना भविष्य बना सकें। कम से कम इन लोगों को तो अपने लिए चैरिटी मत्चेस के लिए बी.सी आई के चक्कर तो नही लगाने पड़ेंगे।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

जब दुखी हों, अकेले हों या उदास हों तो लिख डालें!

कल मैं किसी बात से दुखी, अकेला, उदास सा बैठा हुआ कुछ सोच रहा था कि ख्याल आया। ऐसी हालत में क्या करना चाहिए? और ये सवाल मैंने अपने गूगल सर्च इंजन में डाला, कईं जवाब मिले और एक जवाब पर आकर नज़र ठहर गई उसमें लिखा था कि यदि आप उदास है, दुखी हैं, अकेले या depressed हैं तो अकेले न रहे और यदि अकेले रहना पड़ जाए तो लिखने कि कोशिश करें, जो कुछ भी आपके मन में चल रहा है। इस से आपके मन का बोझ हल्का हो जाएगा।वरना कहीं ऐसा न हो के दुःख या डिप्रेशन में आप कोई ग़लत कदम उठा लें। मुझे ये पढ़कर अपने कईं सवालों का जवाब मिल गया। आखिर ये ब्लॉग भी तो मैने तब ही शुरू किया था कि जब में अपने दिल कि बातों को किसी से कह नही पाता था। आज मेरे पास कहने के लिए एक पन्ना है। जिसपर में लिखकर अपनी बातें छोड़ देता हूँ ताकि मन हल्का हो जाए और फिर से अपने काम पर जुट जाता हूँ। इससे काम में मन भी लगा रहता है और यदि किसी बात पे गुस्सा आए भी तो उतर भी जाता है।साथ मे अपने जैसे ब्लॉगर साथी लोग मिल जाते हैं जो इसमें साथ दे देते हैं। मैं और लोगों से कहना चाहता हूँ की वो लोग भी लिखें.

सहारनपुर पुलिस- तोंद या पोस्ट

तो लो भाई अगर अपने थाने में इंचार्ज बनके रहना है तो अपनी तोंद घटानी पड़ेगी। ये फरमान आया है सहारनपुर पुलिस के एक आला अफसर महोदय का। अरे भाई हैरान न हों मानाकि यदि आप पुलिस में है तो आपको ये फरमान कुछ तुगलकी लगेगा। पर क्या करें ये फरमान आ ही गया। तो अफसर महोदय आप भी कोशिश करके देख लीजिये शायद कामयाब हो ही जाएं वैसे आपको बता दें की आजतक ऐसी कईं मुहीम चलायी गयीं है मगर ये जो तोंद है इसके क्या कहने। जहाँ चढ़ गई उतरती ही नहीं और वो भी यदि पुलिस की हो तो भूल जाना बेहतर है। वैसे में क्यूंकि एक थाने के पास ही रहता हूँ तो मैंने ये तोंद कुछ ज़्यादा ही देखी है। जनाब तोंद अगर कम करनी है तो बेचारे खोमचे वालों और रेहडी वालों को मन कर दें की वो इन्हे देना ही है तो पैसा दे दें ज़्यादा तीमारदारी में न लग कर खिलाना बंद कर दें। और क्यूंकि आप सहारनपुर में हैं तो उनका हलवाई हट्टे जाना तो बंद करवा ही दें वरना तोंद कम होने की बजाये बढ़ ज़रूर जायेगी।
और हाँ अपने तो अरमान ही रह गया की हमारी भी पुलिस अन्य देशो की तरह दुबली पतली हो कम से कम मुजरिमों के पीछे भाग तो सके वरना यहाँ तो मोहल्ले वाले पकड़कर देते हैं।
वैसे मेरी शुभकामनाएं अफसर महोदय के साथ हैं।

ब्रेकिंग न्यूज़- मर्दों का सफाचट सीना!

हमारे खबरिया चैनल ख़बरों के मामले में कितने कंगले हो गए हैं ये इस बात से पता चल जाता है की आजकल वो ये बात बताने लगे हैं की किस हीरो के सीने पर बाल है किसके नही, किसने अपने सीने के बाल मुन्दवाए हैं, और पहले कब थे। अरे भाई क्या अब यही खबरें रह गई हैं हमारे देश में? क्यों किसी राज्य या गांव में जाकर वहाँ की समस्याएं नही लाते और देश को दिखाते। या अब २४ घंटे पूरे करने के लिए वो खबरें ही चलेंगी जिनका देश से मतलब नही होता।

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

अलविदा सुदर्शन फाकिर जी. आपकी कश्ती हमें हमेशा याद रहेगी.

अलविदा सुदर्शन फाकिर जी। आपकी कश्ती हमें हमेशा याद रहेगी.

सुदर्शन जी के बारे में अनुराग पुनेठा जी के इंडिया बोल पर पढ़ा, पढ़कर बड़ा अफ़सोस हुआ। जब से मैंने गीत संगीत सुनना शुरू किया है शायद तभी से मैंने इनके लिखे कागज़ की कश्ती गीत/ग़ज़ल को सुना है। और इसी के साथ बड़ा हुआ हूँ। वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी। जब छोटा था तब शायद सुदर्शन जी के इस गीत का मतलब नही समझा था मगर अब जब थोड़ा बड़ा हो गया हूँ तो पूरा समझ आने लगा है। सुदर्शन जी के बारे में जाना और थोड़ा समझा भी।
सुदर्शन जी आपका लिखा गीत/ग़ज़ल हमेशा हमें याद रहेगी और आपकी याद दिलाती रहेगी। आज ये हम सुनते हैं तथा अपनी यादें ताज़ा करते हैं कल को आने वाली पीढ़ी भी इसे सुनेगी और आपको याद करेगी।

चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है.

कहते हैं के हम सा अलग हैं पर क्या वाकई ऐसा है।
आज भी जितनी इस ग़ज़ल को सुनकर बाकी लोगों के बदन में जो सिहरन पैदा होती है ( जैसे की सुना है) वही मेरा भी हाल होता है। और बहुत कुछ आँखों के आगे से गुज़र जाता है। एक एक पंक्ति यादों के समंदर में गोते खिलने लगती है। और ये ग़ज़ल उन ग़ज़लों में से है जो भारत और पाकिस्तान के बीच के फासले को लगभग खत्म कर देती है। क्यूंकि पता ही नही चलता के गायक पाकिस्तानी है या भार्तिये। और न ही गुलाम अली साहब कभी पराये देश के लगते हैं। ये ग़ज़ल शायद हर किसीकी पसंद में ज़रूर होगी चाहे वो किसी भी उम्र का क्यों न हो। ये बात और है लोग खुलकर आजकल ग़ज़लों को पसंद करने की बात नही करते उन्हें लगता है की बाकी लोग उन्हें पुराने ख़यालात का समझेंगे..

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

जो अब किए हो दाता,ऐसा न कीजो..अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो.

कल एक गाना सुना जिसे देख कर रोंगटे खड़े हो गए सोचा सबके साथ बांटना चाहिए
क्या ख़याल है शायेर का, के जिसमें एक बेटी का दर्द बताया गया है।
फ़िल्म उम्राओ जान
उसकी कुछ पंक्तियाँ
ऐसी है

जो अब किए हो दाता , ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

हमरे सजनवा हमरा दील ऐसा तोदीन
ओ घर बसा -इन हमका रास्ता म चोदीन
जैसे की लल्ला कोई खिलौना जो पह्वे
दुई चार दिन तो खेले फिर भूल जावे
रो भी पह्वे ऐसी गुडिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
जो अब किए हो दाता ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

ऐसी बिदाई बोलो देखि कही है
मैया न बाबुल भइया कौनु नही है
हो , आंसू के गहने है और दुःख की है डोली
बंद केवाडिया मोरे घर की बोली
इस और सपनो में भी आया न कीजो
उस और भी सपनो में भी आया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
जो अब किए हो दाता ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो …

क्या हम पाकिस्तान को लेकर अपने सिर को ज़्यादा दर्द नहीं दे रहे हैं?

क्या हम पाकिस्तान को लेकर अपने सिर को ज़्यादा दर्द नही दे रहा हैं?
पिछले दो दिन हमारे सभी टी.व। नेटवोर्क पाकिस्तान चुनाव को समर्पित नज़र आए। किसकी सरकार बनेगी? कौन वहाँ राज करेगा? इसका भारत पर क्या फर्क पड़ेगा? अरे भाई क्या फर्क पड़ता है? पहले जब परवेज़ मुशर्रफ नही थे तो पाकिस्तान के साथ कौन से बहुत अच्छे सम्बन्ध थे? जो अब चुनाव के बाद बदल जायेंगे।
सारा दिन केवल एक ही रत पाकिस्तान चुनाव। अरे भाई क्यों इतना सर दर्द ले रहे हो और क्यों इतना बाकी लोगों को दे रहे हो? अपने देश में कौनसे कम चिंताएँ हैं?मुशर्रफ से पहले कैसे हालत थे? अब कैसे हालत हैं? आगे क्या होगा? मुशर्रफ के लिए सत्ता पलटना कौनसी नई बात है। पहले क्या जब मुशर्रफ साहब आए थे टैब क्या पाकिस्तान मेंलोक तंत्र नही था क्या? अब क्या नया हो जाएगा ? यदि उनकी पसंद की सरकार नही बनी तो उसका तख्ता पलट हो ही जाएगा.अभी भी वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति ही हैं। अभी भी सेना में उन्ही के लोग बैठे हुए है। अभी भी सेना उन्ही के इशारे पर ही नाचती है। देखा नही था बेनजीर की मौत के बाद, सेना न कैसे केवल मुशर्रफ की ही बात सुनी थी और मानी थी, टैब कौनसी उनके पास वर्दी थी। में केवल इतना ही कहना चाहूँगा की अपने घर की फिक्र ज़्यादा करीं, दूसरों के घरों को छोड़ दें। हमारे देश में कौनसी समस्याओं की कमी है?

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

यूं कभी शाम हो, उस दिन जब किसी को दर्द न मिले.

हम हमेशा सोचते हैं कि हमारा दर्द ही सबसे बड़ा है. पर क्या ऐसा वाकई है?
पता नहीं हमेशा जब भी किसी से मिलता हूँ उस दिन किसी न किसी को कोई न कोई दर्द ज़रूर मिला हुआ होता है. कभी – कभी सोचता हूँ के दर्द होता क्यूँ है? फिर अचानक कुछ धार्मिक बातें याद आ जाती हैं कि खुदा अपने बन्दों का वक़्त – वक़्त पे इम्तिहान लेता है.पर क्या वाकई खुदा को इम्तिहान लेने की ज़रूरत है? पता नहीं?
फिर ज़रा T.V. का रिमोट उठाता हूँ और ख़बर पे लगा लेता हूँ.वहाँ भी कोई न कोई दर्द की ही बात. किसी को राजनीती का दर्द, तो किसी के घर का दर्द.मन बहलाने के लिए किसी नाटक पे लगाना तो ग़ज़ब हो जाता है, हमारे चैनल्स अधिक्तर कोई दर्द वाले ही. नाटक दिखा रहे होते हैं.अब क्या करें कहाँ जाएँ. हाँ एक गाना ज़रूर याद आता है कि…हम को भी ग़म न मारा, तुम को भी ग़म ने मारा, इस गम को मार डालो.
लेकिन शायद ये गम बड़ा मज़बूत है?
ये बात लिखते वक्त अचानक मन में ख्याल आया की मैं क्यूँ मायूसी की बात लिख रहा हूँ.पर फिर सोचा जो दिल में चल रहा है उसे कोतुहल पर न उतारून तो मन हल्का कैसे होगा सो उतारने बैठ गया.

यूँ कभी शाम हो, उस दिन जब किसी को दर्द न मिले
ख्याल यूँ आये के हर ख्याल में ख़ुशी की खुशबू महके

तड़प उठे हर वो शख्स,
जिस के दिल में किसी के लिए बुरा ख्याल गुज़रे

मुक़द्दर तो दे दिया ए रब तूने मेरा भी,
पर कैसे लोग थे जो इस ज़िन्दगी को जीकर निकले

तमाम रात सोचता रहा मैं ये
कहीं ऐसा न हो मेरी ज़िन्दगी भी ग़मों से होकर गुज़रे

मैं इन्तेज़ार में हूँ उस शाम के मेरे मौला
जिसके दिन में किसी गम की कोई खबर न गुज़रे

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

जब काम समझ में न आए. तो क्या कपड़े फाड़ने लगें?

अब क्या करें? जब कुछ काम न हो तो सुना है की इंसान को चाहिए की अपने कपडे फाड़ने लगे और उसे सीने लगे. खाली बैठा था तो सोचा आज का सारा दिन हो गया कुछ खास काम भी नहीं तो क्या करना चाहिए अचानक ये बात दिमाग में आ गयी जो मैंने अपने गाँव में किसी के मुह से सुनी थी. ये वाहाँ की आम कहावत अहि जो की ताना मारने के लिए या मज़ाक में कही जाती है. बात का ध्यान आना था की हंसी छूट गयी साथ में बैठे साथी पोछने लगे की भाई क्यूँ हंस रहे हो. क्या बताता की एक अजीब से कहावत याद आ गयी है. फिर सोचा इसे लिखे छोड़ता हूँ शायद ऐसी कुछ और धारणाएं सुनाने को मिल जाएं. आप का क्या ख्याल है.

अपने ब्लॉग पर गूगल या youtube video कैसे चिपकायें?

आज में अपने ब्लोग पर एक youtube video लगाना चाहता था। पर मुझे समझ नहीं आ रहा के इन्हें कैसे चिप्काऊ । मुझे साथियों की मदद चाहिए. क्यूंकि मुझे पता है यहाँ पर कुछ साथी तकनीकी तौर पर काफी जानकारी रखते हैं.

रविवार, 17 फ़रवरी 2008

भाई पहली टिपण्णी पे कैसा लगता है?

अभी अपना ब्लोग शुरू किये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है। पर लिखने के बाद हमेशा सोचता था. की में जो लिखता हूँ क्या वो सही है.क्यूंकि इंसान को अपनी गलतियां खुद पता नहीं चलती. ऐसा मेरे साथ भी हुआ और मुझे पहली टिपण्णी मिल गयी और पता चला की मेरी लिखी या बताई गयी बात शायद मेरे साथियों को समझ नहीं आई॥और कल जो मैंने लिखा उसके बारे में साथियों ने मेरा साथ दिया. और मेरी कमियों को बताया भी..इससे वाकई में उत्साह बढ़ता है... बहरहाल मेरी गलतियां बताने के लिए धन्यवाद.

शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

जोधा- अकबर ---एक और विवाद!

चलो भाई लोगों बड़े इंतज़ार के बाद एक नयी फिल्म आई सोचा ज़रूर जाकर देखेंगे पर यहाँ क्या हो गया. फिर से एक नया विवाद! जोधा किसकी बीवी ? अकबर की या उसके बेटे की? ये बात समझ नहीं आती की जब ये फिल्म बनायीं जा रही थी तब क्या लूं को पता नहीं था की कुछ गलत हो रहा है? या ये विवाद अचानक उठा है? यार अगर कुछ गलत हो रहा ही तो उसे होने से पहले या होते हुए कोई क्यूँ नहीं रोकता? चलो इसी बहाने फिल्म को प्रचार भी मिल गया.भाई हमें क्या हमें तो आज भी वही जोधा याद है जो हमने मुग़ल ए आज़म में देखि थी.अब फिर भी देखेंगे की नयी जोधा कैसे है. अब बीवी जिसकी भी हो. या बात तो मनाने वाली है की वो हिदुस्तान के बादशाह की बीवी थी. बाकी जो इतिहासकार कहें वो भी सही है..हमें तो मानना ही पड़ेगा..न.....

क्या भद्दी भाषा का प्रयोग करके ही हम अपनी बात को बेहतर समझा पाते हैं?

कल अपने कुछ ब्लॉगर भाइयों के कुछ लेख पढ़े. पर थोडा अफ़सोस भी हुआ की उसमें उन्होने काफी अभद्र भाषा का प्रयोग किया हुआ था. मैं न तो किसीका नाम लेना चाहता हूँ और न ही किसी को शर्मिंदा करना ही मेरा मकसद है.पर क्या लिखने की छूट का मतलब ये होगया है की आप किसी भी प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग करें?

हमारे नए मीडिया खली. क्या आप मिले हैं?

इनसे मिलिए ये हैं हमारे नए मीडिया खली.अजी क्या हुआ हैरान हो गए की न तो ये तस्वीर मीडिया की है और न ही खली की.अजी कहे कन्फ्यूजिया रहे हैं.यही तो हैं वो जो आजकल पहलवानों को कुश्ती के दांव पेंच सिखा रहे है.पिछले दिनों खबर आई की हमारे ग्रेट इंडियन खली यानी अपने दिलीप सिंह राणा की नयी कुश्ती होने वाली है तो चले अपने भी मीडिया के भाई लोग राणा साहब को सिखाने.क्यूँ की अब हमारे खली भी राष्ट्रिये हीरो बन गए हैं.अजी क्रिक्केटर लोगों की तरह. तो जैसे की क्रिकेट के खिलाडियों को सिखाया जाता है की बाल कैसे फेंकनी है और बल्ला कैसे घुमाना है,खली को सिखाया जाता है कि कैसे मानसिक दबाव बनाया जाता है, कौन- कौन से दांव अछे हैं, कौन से दांव किस पर भरी पड़ेंगी, क्या करना चाहिए, क्या खाना चाहिए, कौनसी कसरत करनी चाहिए, वगैरह वगैरह. कभी- कभी में सोचता हूँ कि बेकार ही खली साहब इतना पसीना बहा रहे हैं. हमारे मीडिया के लोगों को भेज दो सारी बेल्ट हमारे देश में ही आ जाएँगी.खली साहब होशियार हो जाईये क्यूँ की आपके पीछे हम भारत में नए नए खलियों की फौज खडी कर रहे हैं.

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

क्या आप को लव अत १स्त् साईट पे यकीन है?




अजी मुझे भी कहाँ था?
पर में आज भी उस दिन को याद करता हूँ जब मैंने मुगल ऐ आज़म देखि थी और उसमें मैंने मधुबालाजी का पहला सीन देखा था घूँघट उठाते हुए.मेरी तो साँसे थम से गयीं थी,वो भी रंगीन में.अजी कहना ही क्या? ऐसा नही है मैंने अपनी ज़िंदगी में हसीन महिलाएं नही देखीं पर इतनी ! लिल्लाह, मशाल्लाह,सुभानाल्लाह। सबकुछ एक साथ ही निकल गया। उस दिन मुझे शर्म भी बड़ी आई अपनी हालत पे की मुझे ये क्या हो गया है.?मैंने ऐसा कैसे सोच सकता हूँ? मैंने बाद में जिस किसीको भी अपने दिल का हाल बताया सा ही ने मेरी मजाक उडाई क्या मेरी गलती ये थी की मैंने सच्चाई बता दी?शायद यही थी। पर समझ में आ गया की लव अट फस्ट साईट भी कुछ होता है।
मधुबालाजी सारे देश की तरह मेरा नाम भी अपने चाहने वालों में डाल लीजियेगा क्यूंकि में सिर्फ़ आपको पसंद ही नही करता बहुत पसंद करता हूँ.
और कल क्यूंकि आपका जन्मदिन है तो याद बड़ी आई.

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

मैंने अपने भाई को नही मारा!

कल फिर से भारत के राजनीतिक इतिहास में नाटक खेला गया।
जिसके नायक थे राज ठाकरे और सह नायक थे राज्य के मुख्यामानरी।
पर जो मारा गया उसका क्या कसूर था उसे न तो रोज़गार की तलाश थी और न ही अपने राज्य में रहने वाले लोगों से शिकायत ही।
पर मारा कौन गया वही जिसकी अस्मियता के लिए इतना शोर हो रहा है।
चलिए इसी बात पर विचार क्यों न हो जाए की हमारा एक मराठी भाई क्यों मारा गया।
हुआ ये की लोग अपने नेता की गिरफ्तारी को लेके परेशान हो गए और उन्होंने एक बस को निशाना बनाया लेकिन हुआ क्या उनको कैसे पहचान होती की बस में मराठी है या पर्प्रन्तिये अजी पता चले भी तो कैसे मराठी व्यक्ति का रंग क्या अन्य भार्तिये लोगों से अलग होता है, या उसके बाल अलग होते हैं, या उसका अंदाज़ अलग होता है। हम सभी भार्तिये लोग दिखने में एक जैसे ही लगते हैं भले ही भाषा हमें अलग करती हो, यही कर्ण था की मनस के लोग धोखा खा गए अब उन्हें समझ जाना चाहिए की वो लोग अलग नही हैं अगर अब भी वो लोग इसी तरह हमले करते रहेंगे तो कहीं न कहीं अपना ही कोई भाई ही उसकी चपेट में आ जाएगा । अगर करना ही है तो देश के दुश्मनों के खिलाफ कुछ करना होगा। अगर करना ही है तो ऐसा करिएँ जिससे देश का कुछ भला हो जाए न की देश टूटने लगे.

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

मेरे आमटे, सबके बाबा, मेरे भारत रत्न, सबके बाबा।

फरवरी की सुबह उठते ही बाबा अम्टे जी कि मृत्यु कि खबर सुनी।सुनकर बड़ा अफ़सोस हुआ। तभी से सोच रहा था कुछ लिखूं पर आज जाकर मौका मिला है।
जब से बाबा के देहांत की ख़बर मिली है पता नही क्यों अजीब सा लग रहा है। पिछले दिनों बड़ा शोर मचा भारत रत्न को लेकर, सबने अपने- अपने नाम और तर्क भी दिए। दो- चार नामों पे मैंने भी विचार किया की इन्हें क्यों?
फिर किसीसे सुना की भारत रत्न उसको मिले जिसने देश हित में कोई काम किया हो। आज मुझे वो बात याद करके बड़ी शर्म आ रही है की किसीने भी बाबा आमटे का नाम क्यों नही लिया? क्या राष्ट्र हित केवल एक लाख रुपये की कार बनाकर या कुछ दिन देश पर राज करके ही पूरा होता है? क्या गरीबों , बेसहारा लोगों की मदद करने वाला इस सम्मान के लायक नही हो सकता?
बाबा आमटे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी ऐसे लोगों की मदद और सेवा में गुजारी जिनके पास कोई जाना भी पसंद नही करता, न उद्योग पति और न ही नेतागण , बीमारी के डर से।
इस लेख को लिखने से पहले मैंने अब अक के ४२ नामों की जानकारी ली, की कहीं ऐसा तो नही की बाबा को पहले ही 'भारत रत्न' मिल गया हो। पर ४२ में उनका नाम नही था। हाँ, अबशायद मेरी ही तरह और लोगों को भी बाबा की याद आए और अगले साल मर्नोप्रांत उन्ह ये सम्मान मिले ।
क्या करें बाबा आपको टू पता ही है हमारे देश में जिंदा लोगों की क़द्र नही होती पर मुर्दे पूजे जाते हैं।
काश आपका भी सम्बन्ध किसी राजनीतिक दल से रहा होता, टू कोई न कोई आपका नाम आगे कर ही देता। पर बाबा आप महान थे, आप महान हैं और आप महान रहेंगे। बेशक कोई न माने आप मेरे लिए 'भारत रत्ना हैं'।
जय हिंद

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008

खुश तो बहुत होगे राज तुम?

दिल किया कि राज ठाकरे जी कि आपको मुबारकबाद दे ही दूं।
आख़िर जो आप चाहते थे हो ही गया। जो आपकी मंशा थी कि दंगा भड़के,भड़क ही गया न। चलो अच्छा है आपकी भी राजनीतिक ज़मीन तैयार हो ही गयी। आख़िर आपने अपने जैसे कुछ और सिरफिरों को अपने साथ मिला ही लिया। लेकिन इसका अंत क्या होगा? अभी तो सिर्फ लोगों की पिटाई और कुछ सिनेमा घरों में आगज़नी ही हुई है , हो सकता है आपके के जैसे कुछ लोग किसीकी जान भी ले लें। पर आपका क्या आपका तो राजनितिक कद बढ़ ही जाएगा न। और वैसे भी आजतक हुआ ही क्या है? इसी तरह दंगा भड़का कर तुम जैसे लोग अपनी १ सीट को १० तथा १० सीट को १०० करते ही रहे हैं। मगर याद रखो ऐसा कुछ दिन के लिए ही होगा , बाद में सब लोगो को अक्ल आ ही जायेगी और तुम्हारा राजनीतिक कद बोना कर दिया जाएगा।
और एक सवाल सब से अक्सर कोई आम नागरिक यदि राज की तरज बयान देता तो उस पर पोटा या देशद्रोह जैसे आरोप लगा दिए जाते किन्तु यहाँ जहाँ पर देश के टुकड़े करने की साजिश हो रही है वहाँ राज की गिरफ्तारी की आवाज़ कोई क्यों नही उठाता?

शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

भाई खुल के कहो!

ये आजकल के शेत्रिये दल क्या चाहते हैं खुल कर क्यों नही कहते?
राज ठाकरे हमारे देश के एक बडे शेत्रिये दल से अलग होकर इन्होने अपना एक नया दल बनाया सोचा नया निर्माण होगा पर लग रह है इन्हें पता चल गया कि शेत्रिये दल नया हो या पुराना ढर्रा वही रहता है नही बदलता। उत्तर भारतीयों पर इनके विचार हों या अमिताभ बच्चन जी पे की गयी टिपण्णी इससे शेत्रियता कि बू आती है वही बू जो शायद हमारे पूर्वजों ने महसूस की थी, भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समये। आखिर ऐसे दल चाहते क्या हैं खुल कर क्यों नही कहते? एक बार फिर से बंटवारा करवाना कहते हैं क्या या चाहते हैं कि दोबारा इस देश में दंगे भड़क जाएं जैसे पहले धरम और शेत्रियता के नाम पर पहले भी भड़क चुके हैं। इन्हें कब समझ आयेगा कि भारत एक बड़ा देश हैं जहाँ विभिन्न धर्म के लोग हैं, विभिन्न राज्य हैं। इस देश में कोई भी कभी भी, कहीं भी आ जा सकता है। ये लोग क्या चाहते हैं ? ैं कि हम बाक़ी भारत के लोग इनके राज्य में न आयें? या ये ऐसा सिर्फ अपने राज्य के लोगों को खुश करने मात्र के लिए कर रहे हैं। शायद ये लोग नही जानते कि यदि उत्तर भार्तिये न हों तो इन बडे शहरों में सभी बुनियादी सुविधाओं का अभाव हो जाएगा। ये लिओग क्या कर रहे हैं? क्या कहते हैं? लोगों को समझायें तो सही। और अगर ये लोग अपने इलाके को बाक़ी भारत से काटना चाहते हैं तो भूल जाएं ऐसा नही होगा। इन लोगों को चाहिऐ कि खुद भी सुख से रहे और बाक़ी लोगों को भी रहने दें। हम भारत के नागरिक हैं किसी दिल्ली, किसी मुम्बई , किसी कोलकता के नही हैं। हम सभी एक ही राष्ट्रिये गान तथा राष्ट्रिये गीत गाते हैं।जिसमें हमें बताया गया है कि हिन्दी हैं कि हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा। इन लोगों को एक बार फिर से राष्ट्र गान तथा राष्ट्रिये गीत का मतलब समझाना पड़ेगा क्यूंकि ये लोग भूल गए हैं अपनी ओछी राजनीती के कारण .

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