कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008
दोस्तों मुझे मुबारकबाद दो- आज फिर मेरी चप्पलें चोरी हो गई!
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
ओरकुट और मैं! जिसने मुझे दोबारा मेरे दोस्तों से मिलाया!
बुधवार, 27 फ़रवरी 2008
एक ही दिन में सबसे ज़्यादा भरती और प्रोमोशन्स- इट हप्पेंस ओनली इन इंडिया!
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008
स्कूल का फ्येर्वेल ( school farewell)- वो सुहानी यादें!
इस मौके पर मुझे अली हैदर का वो गाना याद आता है
की 'पुरानी जींस और गिटार'
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
चलो अब हमने भी ग़रारे कर लिए, अब हम भी गायक हो ही गए!
न होता मैं तो क्या होता? शिकवा ज़िंदगी से! मिर्जा ग़ालिब
तो इस मौके पर मिर्जा ग़ालिब की कुछ पंक्तियाँ याद आ गई सोचा लिख लूँ।
न था कुछ -मिर्जा गालिब
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता।
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता
हुआ जब ग़म से यूं बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटाने का
न होता गर जुदा तन से ज़ानों पर धारा होता।
हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया , पर याद आता है।
वो हर पार पर कहना, यूं होता तो क्या होता।
एकता कुत्तों की और इंसान के नाते मेरी जलन!
शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
आई पी एल में पैसों की बरसात- इंसान अपने दुःख से कम दूसरे के सुख से ज़्यादा दुखी !
शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
जब दुखी हों, अकेले हों या उदास हों तो लिख डालें!
सहारनपुर पुलिस- तोंद या पोस्ट
और हाँ अपने तो अरमान ही रह गया की हमारी भी पुलिस अन्य देशो की तरह दुबली पतली हो कम से कम मुजरिमों के पीछे भाग तो सके वरना यहाँ तो मोहल्ले वाले पकड़कर देते हैं।
वैसे मेरी शुभकामनाएं अफसर महोदय के साथ हैं।
ब्रेकिंग न्यूज़- मर्दों का सफाचट सीना!
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
अलविदा सुदर्शन फाकिर जी. आपकी कश्ती हमें हमेशा याद रहेगी.
सुदर्शन जी के बारे में अनुराग पुनेठा जी के इंडिया बोल पर पढ़ा, पढ़कर बड़ा अफ़सोस हुआ। जब से मैंने गीत संगीत सुनना शुरू किया है शायद तभी से मैंने इनके लिखे कागज़ की कश्ती गीत/ग़ज़ल को सुना है। और इसी के साथ बड़ा हुआ हूँ। वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी। जब छोटा था तब शायद सुदर्शन जी के इस गीत का मतलब नही समझा था मगर अब जब थोड़ा बड़ा हो गया हूँ तो पूरा समझ आने लगा है। सुदर्शन जी के बारे में जाना और थोड़ा समझा भी।
सुदर्शन जी आपका लिखा गीत/ग़ज़ल हमेशा हमें याद रहेगी और आपकी याद दिलाती रहेगी। आज ये हम सुनते हैं तथा अपनी यादें ताज़ा करते हैं कल को आने वाली पीढ़ी भी इसे सुनेगी और आपको याद करेगी।
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है.
आज भी जितनी इस ग़ज़ल को सुनकर बाकी लोगों के बदन में जो सिहरन पैदा होती है ( जैसे की सुना है) वही मेरा भी हाल होता है। और बहुत कुछ आँखों के आगे से गुज़र जाता है। एक एक पंक्ति यादों के समंदर में गोते खिलने लगती है। और ये ग़ज़ल उन ग़ज़लों में से है जो भारत और पाकिस्तान के बीच के फासले को लगभग खत्म कर देती है। क्यूंकि पता ही नही चलता के गायक पाकिस्तानी है या भार्तिये। और न ही गुलाम अली साहब कभी पराये देश के लगते हैं। ये ग़ज़ल शायद हर किसीकी पसंद में ज़रूर होगी चाहे वो किसी भी उम्र का क्यों न हो। ये बात और है लोग खुलकर आजकल ग़ज़लों को पसंद करने की बात नही करते उन्हें लगता है की बाकी लोग उन्हें पुराने ख़यालात का समझेंगे..
बुधवार, 20 फ़रवरी 2008
जो अब किए हो दाता,ऐसा न कीजो..अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो.
क्या ख़याल है शायेर का, के जिसमें एक बेटी का दर्द बताया गया है।
फ़िल्म उम्राओ जान
उसकी कुछ पंक्तियाँ
ऐसी है
जो अब किए हो दाता , ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
हमरे सजनवा हमरा दील ऐसा तोदीन
ओ घर बसा -इन हमका रास्ता म चोदीन
जैसे की लल्ला कोई खिलौना जो पह्वे
दुई चार दिन तो खेले फिर भूल जावे
रो भी पह्वे ऐसी गुडिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
जो अब किए हो दाता ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
ऐसी बिदाई बोलो देखि कही है
मैया न बाबुल भइया कौनु नही है
हो , आंसू के गहने है और दुःख की है डोली
बंद केवाडिया मोरे घर की बोली
इस और सपनो में भी आया न कीजो
उस और भी सपनो में भी आया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
जो अब किए हो दाता ऐसा न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो …
क्या हम पाकिस्तान को लेकर अपने सिर को ज़्यादा दर्द नहीं दे रहे हैं?
पिछले दो दिन हमारे सभी टी.व। नेटवोर्क पाकिस्तान चुनाव को समर्पित नज़र आए। किसकी सरकार बनेगी? कौन वहाँ राज करेगा? इसका भारत पर क्या फर्क पड़ेगा? अरे भाई क्या फर्क पड़ता है? पहले जब परवेज़ मुशर्रफ नही थे तो पाकिस्तान के साथ कौन से बहुत अच्छे सम्बन्ध थे? जो अब चुनाव के बाद बदल जायेंगे।
सारा दिन केवल एक ही रत पाकिस्तान चुनाव। अरे भाई क्यों इतना सर दर्द ले रहे हो और क्यों इतना बाकी लोगों को दे रहे हो? अपने देश में कौनसे कम चिंताएँ हैं?मुशर्रफ से पहले कैसे हालत थे? अब कैसे हालत हैं? आगे क्या होगा? मुशर्रफ के लिए सत्ता पलटना कौनसी नई बात है। पहले क्या जब मुशर्रफ साहब आए थे टैब क्या पाकिस्तान मेंलोक तंत्र नही था क्या? अब क्या नया हो जाएगा ? यदि उनकी पसंद की सरकार नही बनी तो उसका तख्ता पलट हो ही जाएगा.अभी भी वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति ही हैं। अभी भी सेना में उन्ही के लोग बैठे हुए है। अभी भी सेना उन्ही के इशारे पर ही नाचती है। देखा नही था बेनजीर की मौत के बाद, सेना न कैसे केवल मुशर्रफ की ही बात सुनी थी और मानी थी, टैब कौनसी उनके पास वर्दी थी। में केवल इतना ही कहना चाहूँगा की अपने घर की फिक्र ज़्यादा करीं, दूसरों के घरों को छोड़ दें। हमारे देश में कौनसी समस्याओं की कमी है?
मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008
यूं कभी शाम हो, उस दिन जब किसी को दर्द न मिले.
पता नहीं हमेशा जब भी किसी से मिलता हूँ उस दिन किसी न किसी को कोई न कोई दर्द ज़रूर मिला हुआ होता है. कभी – कभी सोचता हूँ के दर्द होता क्यूँ है? फिर अचानक कुछ धार्मिक बातें याद आ जाती हैं कि खुदा अपने बन्दों का वक़्त – वक़्त पे इम्तिहान लेता है.पर क्या वाकई खुदा को इम्तिहान लेने की ज़रूरत है? पता नहीं?
फिर ज़रा T.V. का रिमोट उठाता हूँ और ख़बर पे लगा लेता हूँ.वहाँ भी कोई न कोई दर्द की ही बात. किसी को राजनीती का दर्द, तो किसी के घर का दर्द.मन बहलाने के लिए किसी नाटक पे लगाना तो ग़ज़ब हो जाता है, हमारे चैनल्स अधिक्तर कोई दर्द वाले ही. नाटक दिखा रहे होते हैं.अब क्या करें कहाँ जाएँ. हाँ एक गाना ज़रूर याद आता है कि…हम को भी ग़म न मारा, तुम को भी ग़म ने मारा, इस गम को मार डालो.
लेकिन शायद ये गम बड़ा मज़बूत है?
ये बात लिखते वक्त अचानक मन में ख्याल आया की मैं क्यूँ मायूसी की बात लिख रहा हूँ.पर फिर सोचा जो दिल में चल रहा है उसे कोतुहल पर न उतारून तो मन हल्का कैसे होगा सो उतारने बैठ गया.
यूँ कभी शाम हो, उस दिन जब किसी को दर्द न मिले
ख्याल यूँ आये के हर ख्याल में ख़ुशी की खुशबू महके
तड़प उठे हर वो शख्स,
जिस के दिल में किसी के लिए बुरा ख्याल गुज़रे
मुक़द्दर तो दे दिया ए रब तूने मेरा भी,
पर कैसे लोग थे जो इस ज़िन्दगी को जीकर निकले
तमाम रात सोचता रहा मैं ये
कहीं ऐसा न हो मेरी ज़िन्दगी भी ग़मों से होकर गुज़रे
मैं इन्तेज़ार में हूँ उस शाम के मेरे मौला
जिसके दिन में किसी गम की कोई खबर न गुज़रे
सोमवार, 18 फ़रवरी 2008
जब काम समझ में न आए. तो क्या कपड़े फाड़ने लगें?
अपने ब्लॉग पर गूगल या youtube video कैसे चिपकायें?
रविवार, 17 फ़रवरी 2008
भाई पहली टिपण्णी पे कैसा लगता है?
शनिवार, 16 फ़रवरी 2008
जोधा- अकबर ---एक और विवाद!
क्या भद्दी भाषा का प्रयोग करके ही हम अपनी बात को बेहतर समझा पाते हैं?
हमारे नए मीडिया खली. क्या आप मिले हैं?
शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008
क्या आप को लव अत १स्त् साईट पे यकीन है?
अजी मुझे भी कहाँ था?
पर में आज भी उस दिन को याद करता हूँ जब मैंने मुगल ऐ आज़म देखि थी और उसमें मैंने मधुबालाजी का पहला सीन देखा था घूँघट उठाते हुए.मेरी तो साँसे थम से गयीं थी,वो भी रंगीन में.अजी कहना ही क्या? ऐसा नही है मैंने अपनी ज़िंदगी में हसीन महिलाएं नही देखीं पर इतनी ! लिल्लाह, मशाल्लाह,सुभानाल्लाह। सबकुछ एक साथ ही निकल गया। उस दिन मुझे शर्म भी बड़ी आई अपनी हालत पे की मुझे ये क्या हो गया है.?मैंने ऐसा कैसे सोच सकता हूँ? मैंने बाद में जिस किसीको भी अपने दिल का हाल बताया सा ही ने मेरी मजाक उडाई क्या मेरी गलती ये थी की मैंने सच्चाई बता दी?शायद यही थी। पर समझ में आ गया की लव अट फस्ट साईट भी कुछ होता है।
मधुबालाजी सारे देश की तरह मेरा नाम भी अपने चाहने वालों में डाल लीजियेगा क्यूंकि में सिर्फ़ आपको पसंद ही नही करता बहुत पसंद करता हूँ.
और कल क्यूंकि आपका जन्मदिन है तो याद बड़ी आई.
गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008
मैंने अपने भाई को नही मारा!
जिसके नायक थे राज ठाकरे और सह नायक थे राज्य के मुख्यामानरी।
पर जो मारा गया उसका क्या कसूर था उसे न तो रोज़गार की तलाश थी और न ही अपने राज्य में रहने वाले लोगों से शिकायत ही।
पर मारा कौन गया वही जिसकी अस्मियता के लिए इतना शोर हो रहा है।
चलिए इसी बात पर विचार क्यों न हो जाए की हमारा एक मराठी भाई क्यों मारा गया।
हुआ ये की लोग अपने नेता की गिरफ्तारी को लेके परेशान हो गए और उन्होंने एक बस को निशाना बनाया लेकिन हुआ क्या उनको कैसे पहचान होती की बस में मराठी है या पर्प्रन्तिये अजी पता चले भी तो कैसे मराठी व्यक्ति का रंग क्या अन्य भार्तिये लोगों से अलग होता है, या उसके बाल अलग होते हैं, या उसका अंदाज़ अलग होता है। हम सभी भार्तिये लोग दिखने में एक जैसे ही लगते हैं भले ही भाषा हमें अलग करती हो, यही कर्ण था की मनस के लोग धोखा खा गए अब उन्हें समझ जाना चाहिए की वो लोग अलग नही हैं अगर अब भी वो लोग इसी तरह हमले करते रहेंगे तो कहीं न कहीं अपना ही कोई भाई ही उसकी चपेट में आ जाएगा । अगर करना ही है तो देश के दुश्मनों के खिलाफ कुछ करना होगा। अगर करना ही है तो ऐसा करिएँ जिससे देश का कुछ भला हो जाए न की देश टूटने लगे.
शनिवार, 9 फ़रवरी 2008
मेरे आमटे, सबके बाबा, मेरे भारत रत्न, सबके बाबा।
जब से बाबा के देहांत की ख़बर मिली है पता नही क्यों अजीब सा लग रहा है। पिछले दिनों बड़ा शोर मचा भारत रत्न को लेकर, सबने अपने- अपने नाम और तर्क भी दिए। दो- चार नामों पे मैंने भी विचार किया की इन्हें क्यों?
फिर किसीसे सुना की भारत रत्न उसको मिले जिसने देश हित में कोई काम किया हो। आज मुझे वो बात याद करके बड़ी शर्म आ रही है की किसीने भी बाबा आमटे का नाम क्यों नही लिया? क्या राष्ट्र हित केवल एक लाख रुपये की कार बनाकर या कुछ दिन देश पर राज करके ही पूरा होता है? क्या गरीबों , बेसहारा लोगों की मदद करने वाला इस सम्मान के लायक नही हो सकता?
बाबा आमटे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी ऐसे लोगों की मदद और सेवा में गुजारी जिनके पास कोई जाना भी पसंद नही करता, न उद्योग पति और न ही नेतागण , बीमारी के डर से।
इस लेख को लिखने से पहले मैंने अब अक के ४२ नामों की जानकारी ली, की कहीं ऐसा तो नही की बाबा को पहले ही 'भारत रत्न' मिल गया हो। पर ४२ में उनका नाम नही था। हाँ, अबशायद मेरी ही तरह और लोगों को भी बाबा की याद आए और अगले साल मर्नोप्रांत उन्ह ये सम्मान मिले ।
क्या करें बाबा आपको टू पता ही है हमारे देश में जिंदा लोगों की क़द्र नही होती पर मुर्दे पूजे जाते हैं।
काश आपका भी सम्बन्ध किसी राजनीतिक दल से रहा होता, टू कोई न कोई आपका नाम आगे कर ही देता। पर बाबा आप महान थे, आप महान हैं और आप महान रहेंगे। बेशक कोई न माने आप मेरे लिए 'भारत रत्ना हैं'।
जय हिंद
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008
खुश तो बहुत होगे राज तुम?
आख़िर जो आप चाहते थे हो ही गया। जो आपकी मंशा थी कि दंगा भड़के,भड़क ही गया न। चलो अच्छा है आपकी भी राजनीतिक ज़मीन तैयार हो ही गयी। आख़िर आपने अपने जैसे कुछ और सिरफिरों को अपने साथ मिला ही लिया। लेकिन इसका अंत क्या होगा? अभी तो सिर्फ लोगों की पिटाई और कुछ सिनेमा घरों में आगज़नी ही हुई है , हो सकता है आपके के जैसे कुछ लोग किसीकी जान भी ले लें। पर आपका क्या आपका तो राजनितिक कद बढ़ ही जाएगा न। और वैसे भी आजतक हुआ ही क्या है? इसी तरह दंगा भड़का कर तुम जैसे लोग अपनी १ सीट को १० तथा १० सीट को १०० करते ही रहे हैं। मगर याद रखो ऐसा कुछ दिन के लिए ही होगा , बाद में सब लोगो को अक्ल आ ही जायेगी और तुम्हारा राजनीतिक कद बोना कर दिया जाएगा।
और एक सवाल सब से अक्सर कोई आम नागरिक यदि राज की तरज बयान देता तो उस पर पोटा या देशद्रोह जैसे आरोप लगा दिए जाते किन्तु यहाँ जहाँ पर देश के टुकड़े करने की साजिश हो रही है वहाँ राज की गिरफ्तारी की आवाज़ कोई क्यों नही उठाता?
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
भाई खुल के कहो!
राज ठाकरे हमारे देश के एक बडे शेत्रिये दल से अलग होकर इन्होने अपना एक नया दल बनाया सोचा नया निर्माण होगा पर लग रह है इन्हें पता चल गया कि शेत्रिये दल नया हो या पुराना ढर्रा वही रहता है नही बदलता। उत्तर भारतीयों पर इनके विचार हों या अमिताभ बच्चन जी पे की गयी टिपण्णी इससे शेत्रियता कि बू आती है वही बू जो शायद हमारे पूर्वजों ने महसूस की थी, भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समये। आखिर ऐसे दल चाहते क्या हैं खुल कर क्यों नही कहते? एक बार फिर से बंटवारा करवाना कहते हैं क्या या चाहते हैं कि दोबारा इस देश में दंगे भड़क जाएं जैसे पहले धरम और शेत्रियता के नाम पर पहले भी भड़क चुके हैं। इन्हें कब समझ आयेगा कि भारत एक बड़ा देश हैं जहाँ विभिन्न धर्म के लोग हैं, विभिन्न राज्य हैं। इस देश में कोई भी कभी भी, कहीं भी आ जा सकता है। ये लोग क्या चाहते हैं ? ैं कि हम बाक़ी भारत के लोग इनके राज्य में न आयें? या ये ऐसा सिर्फ अपने राज्य के लोगों को खुश करने मात्र के लिए कर रहे हैं। शायद ये लोग नही जानते कि यदि उत्तर भार्तिये न हों तो इन बडे शहरों में सभी बुनियादी सुविधाओं का अभाव हो जाएगा। ये लिओग क्या कर रहे हैं? क्या कहते हैं? लोगों को समझायें तो सही। और अगर ये लोग अपने इलाके को बाक़ी भारत से काटना चाहते हैं तो भूल जाएं ऐसा नही होगा। इन लोगों को चाहिऐ कि खुद भी सुख से रहे और बाक़ी लोगों को भी रहने दें। हम भारत के नागरिक हैं किसी दिल्ली, किसी मुम्बई , किसी कोलकता के नही हैं। हम सभी एक ही राष्ट्रिये गान तथा राष्ट्रिये गीत गाते हैं।जिसमें हमें बताया गया है कि हिन्दी हैं कि हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा। इन लोगों को एक बार फिर से राष्ट्र गान तथा राष्ट्रिये गीत का मतलब समझाना पड़ेगा क्यूंकि ये लोग भूल गए हैं अपनी ओछी राजनीती के कारण .