सोमवार, 16 जून 2008

पापा!

प्यारे पापा,
मैं जानता हूँ कि ये ख़त मैं आपको सीधे नही लिख रहा हूँ, मगर इसकी वजह क्या है आप जानते है कि मैं आपसे सीधे बात नही कर सकता। मुझे ये भी पता है कि शायद इस ख़त के बारे में आपको थोडी देर से पता चले या शायद पता ही न चले। पता नही क्यों बहुत दिन से आपसे कहना चाहता था कि मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ। मम्मी को तो ये बात पता है क्यूंकि वो मेरे साथ हमेशा रहती हैं और उनसे बात भी होती रहती है मगर पता नही क्यों आज तक आपसे कहने कि हिम्मत नही हुई है। और मैं ये भी जानता हूँ कि आप भी मुझसे इतना ही प्यार करते हैं या शायद उससे भी ज़्यादा। मुझे आज भी याद है बचपन में ईद से पहले जब आपको पैसे कम मिला करते थे तो आप कभी भी अपने लिए कपड़े लेकर नही आए, मगर कभी हमारी ईद को सूखा नही जाने दिया आपने।
मुझे पढाई के लिए जब भी पैसे की ज़रूरत होती आप अपना सब काम छोड़कर या टालकर मेरा काम किया करते थे। मेरा ही नही हम सभी बहन-भाइयों का। और आज भी कर रहे हैं। हाँ आज हम कितने भी बड़े हो गए हों मगर आपसे बड़े नही हो सकते। आप हमेशा हमारे लिए सबकुछ है और रहेंगे। आज से एक साल पहले २९ जून के दिन जब मैं बीमार पड़ा था और कईं दिनों तक हॉस्पिटल में था तब आपने अपनी रातें जाग जाग कर गुजारी है जबकी आप दिन भर काम से थक कर आया करते थे।
सुना है माँ अपने बच्चों से कह देते है कि वो उनसे कितना प्यार करती है, मगर बाप नही कह पाता। और शायद बच्चे भी हमेशा बस माँ से ही कह पाता हैं अपने दिल की बात मगर बाप से नही कह पाते। मगर आपकी आँखें जो रात भर हमारे बारे में सोचते सोचते पथरा सी गई हैं सब कह जाती है। पहले जब mother's डे था हमने बड़ा शोर शराबा मचाया था मगर कल जब father's डे था तो हम सब चुप चाप सो गए और आपसे कुछ कहा ही नही।
मैं आज आपसे, आपने जो कुछ भी हमारे लिए किया उसका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। और आपसे वादा करना चाहता हूँ कि पहले कि तरह आपका दिल नही दुखाऊंगा।
अल्लाह हाफिज़
आपका मिन्टू

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