आजकल लेखन के तकनीकी तौर पर सही होने का ज़माना सा लग रहा है। मुझे मेरे एक मित्र ने बताया कि तुम्हारी ब्लॉग की कुछ पोस्ट पढीं और पाया उसमें लेखन की कुछ तकनीकी खामियां थीं। अब ये सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए। मैंने कहा अरे भाई हिन्दी में लिखता हूँ, मात्राओं की गलती कम करता हूँ और कौनसी तकनीक लगानी है। अब मुझे वो सब समझाने की कोशिश की जिसमें हमारे हिन्दी के उस्ताद तक परेशान हो गए थे।
उन्होंने मुझे बता कि जनाब आप हिन्दी लिखते वक्त उर्दू का प्रयोग बहुत करते हैं, कहीं कहीं भोजपुरी और पंजाबी भी चली आती है। सबसे ज़्यादा शिकायत आई हमारी तुकबंदी को लेकर, अब मुझे क्या पता था इसमें भी तकनीक लगती है। बहरहाल हमारी कक्षा घंटो तक चली और अंत में हमसे पूछा गया कि क्या सीखे? अब जवाब के मौके पर अपनी मुंडी फिर नीचे।
इसके बाद हिम्मत करके हमने भी पूछ ही लिया की पहले ये बताओ बात समझ आ गयी न क्या लिखा था पोस्ट में? उन्होने हाँ में सर हिला दिया और फँस गए। मैंने कहा, "बस तो फिर अपना काम है अपनी बात को समझाना। और जो भाषा लिखता हूँ अधिकतर लोगों की समझ में आ जाती है. "अब ये सुनकर जनाब खामोश हो गए। और वैसे भी अभी लेखन शुरू किया है। कोई साहित्यकार नही हूँ, हो सकता है समय के साथ सुधार आजाये। वैसे इसकी उम्मीद काफ़ी कम है।बाकि कोशिश जारी रहेगी।
मैंने भी सोचा कि क्यूँ न एक चेतावनी के तौर पर एक बार ब्लॉग पर पोस्ट कर दूँ।
चेतावनी : पढने वाले अपनी ज़िम्मेदारी पर पढ़ें! लेख तकनीकी तौर पर सही होने की ज़िम्मेदारी नही है!
जनाब, ज़रा अपने ब्लाग के नाम कोतुहल को सही करके 'कौतूहल' तो कर लीजिए....
जवाब देंहटाएंkisi bhi bhasha ki takniki ko samajhna to uchit hai, kintu logon ko is bat par koi apatti nahi honi chahie ki kisi anya bhasha ke shabd pryukt na karen, esa sambhav nahi hai vyavhartaya, is jagah aap sahi hain,
जवाब देंहटाएंmujhe bhi kuchh log kahte hain sab kuchh hindi phont me likho, par main itna takniki jankaar hun nahi ki kaise load karun kaise likhun , main bhi pratham bat yahi dhyan rakhta hun , ki mera sampreshan logon tak sahi tarah se pahuncha ya nahi..
बहुत सही, भाषा वही होनी चाहिए जिसे आम लोग समझ सके . मे भी यही करती हूँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मिथिलेश जी
जवाब देंहटाएंपढने वाले तक आपकी बात पहुँचनी चाहिए बस।
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