हुआ जब सवेरा मुझे तुम याद आए!
जब तन्हाई में दिल धड़का मुझे तुम याद आए!!
बैठा था मैं कोई शिकवा दिल में लिए!
और जब इसे दूर किया मुझे तुम याद आए!!
करता है आफताब यूं तो रोशन जहाँ को!
मगर जब आफताब खिला मुझे तुम याद आए!!
हर आता हुआ लम्हा मुझे मौत के करीब ले जाता है!
हुआ जब ज़िक्र मौत का मुझे तुम याद आए!!
हर एक लम्हा तुम ही हो निगाहों में!
ऐसा कोई पल नही जब तुम याद न आए!!
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना.
बधाई.
करता है आफताब यूं तो रोशन जहाँ को!
जवाब देंहटाएंमगर जब आफताब खिला मुझे तुम याद आए!!..
यू तो पूरी ग़ज़ल ही बढ़िया पर.. मुझे ये शेर बढ़िया लगा.. लिखते रहिए
bahut achcha likha hai....
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