पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है कि जैसे १६ मई २००८ के बाद से देश में कोई भी क़त्ल नही हुआ है। अब या तो ये मेरी समझ का फेर है या मुझे किसी अख़बार या टीवी चैनल पर कुछ और दिखता ही नही नही।
ऐसा नही है कि मुझे आरुषी या हेमराज से सहानुभूति नही है, मगर मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि हम एक को इन्साफ दिलाने पर ज़्यादा ज़ोर से रहे हैं और इस बीच कई लोगों को इन्साफ मिलने में देर आ रही है। हम अपने न्यूज़ चैनल्स कि जितनी चाहे आलोचना करें मगर ये सच है कि इनके दबाव के कारण बहुत से मामले जल्दी सुलझाए गए हैं।
इस बीच एक और मामला है जो कि गाजियाबाद का जहाँ कई बच्चे पिछले कई दिनों से गायब हो रहे है और उनकी सुध लेने वाला कोई नही है। बच्चों से संबंधित सभी संस्थाएं केवल आरुषी मामले को ही देख रही हैं मगर उन बच्चों का क्या उन्हें कौन देखेगा? हाँ ये ख़बर मुझे एक अंग्रेज़ी अखबार से मिली मगर वो भी भीतरी पन्नों में थोडी सी।
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