हम चल दिए थे मंज़िल की तरफ़,
और सोच रहे थे उसे पाने की,
पर हमको क्या पता था, पागल थे हम भी,
क्यूंकि कुछ फासले कभी कम नही होते।
हम यही सोचकर चलते रहे,
के वो भी यही सोचता होगा,
जितना हम इंतज़ार में तड़प रहे हैं,
वो भी तो तड़प रहा होगा,
पर हमको क्या पता था, पागल थे हम भी,
क्यूंकि तड़पाने वाले तो होते हैं, पर तड़पने वाले लोग, अब नहीं होते।
सारी ज़िन्दगी इंतज़ार उसका करते रहे हम,
सुबह से शाम ज़िन्दगी, करते रहे हम,
सोचते रहे के वो अब आएगा, वो आएगा,
कभी तो ये इन्तेज़ार मिटाएगा, वो अब आएगा
पर हमको क्या पता था, पागल थे हम भी,
क्यूंकि कुछ इन्तेज़ार कभी ख़त्म नही होते।
sahi kaha aapne.....bhadai sundar rachna.
जवाब देंहटाएंपर हमको क्या पता था, पागल थे हम भी,
जवाब देंहटाएंक्यूंकि कुछ इन्तेज़ार कभी ख़त्म नही होते।
--बहुत उम्दा, वाह जी.
बेहतरीन...
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