आज सुबह से समाचार चलाया जा रहा है कि महाराष्ट्र में किसी अखबार के सम्पादक के घर का घेराव किया गया और पत्थर बाजी भी की गई। सुनकर बड़ा अफ़सोस हुआ और उसके बाद कुछ दिन पहले के अखबार की ख़बर याद आ गई जिसमे गुजरात के एक आला पुलिस अफसर ने एक सम्पादक पर देशद्रोह का केस दर्ज करवा दिया।
अब मंथन शुरू हुआ पहले तो ये कि क्या हमारे देश में किसी के बारे में लिखना इतना जोखिम भरा है?
इन दोनों में से किसी भी सम्पादक ने ये नही सोचा होगा कि उनके साथ इतना बुरा हो सकता है।
मगर विरोध करने का तरीका क्या हो और कौन क्या तरीका अपनाता है? थोड़ा बहुत सोचने पर पता चला कि विरोध भी व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। जिसका व्यक्तित्व पुलिसिया था उसने उसी तरह दिखाया और अपनी वर्दी का रॉब भी झाड़ दिया। अब जो गुंडा है उससे किस तरह के विरोध की उम्मीद की जा सकती है। उसने उसी प्रकार विरोध जताया अब बच गए शरीफ लोग उनको वैसे भी भूखा मरना है वो लोग मेघा पाटकर की भांति भूखे रहकर विरोध जताते हैं।
अब मुझे लगता है बाकी लोगों के बारे में यदि में चुप रहूँ तो शायद मेरी सेहत के लिए भी बेहतर रहेगा। [:)]
क्यूंकि आजकल बोलने और लिखेने वालों का ही अधिक विरोध हो रहा है।
हाँ जी हाँ
जवाब देंहटाएंहम भी आपसे सहमत हैं.
वाकई लिखना खतरनाक होता जा रहा है, इसलिये हम तो चुप ही हैं.
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