शुक्रवार, 6 जून 2008

शरीफ का आन्दोलन: मीडिया है, लोग हैं और पुलिस है। गुंडों का आन्दोलन : मीडिया है, लोग हैं और पुलिस नही है।

शरीफ का आन्दोलन: मीडिया है, लोग हैं और पुलिस है।
गुंडों का आन्दोलन : मीडिया है, लोग हैं और पुलिस नही है।
यूँही विरोधों के बारे में सोच रहा था अजीब सा संयोग सामने आया। यदि कोई नौकरी की माँगा के लिए आन्दोलन करता है, महंगाई के लिए आन्दोलन करता है, या किसी भी अच्छे काम के लिए आन्दोलन करता है है तो वहाँ मीडिया तो होता है, लोग भी होते हैं मगर साथ में पुलिस भी लाठियाँ भांजने पहुँच जाती है।
मगर यदि कई गुंडे अपने राजनीतिक आन्दोलन को अंजाम देते हैं, सबसे पहले इसकी ख़बर सबको कर देते हैं, जिससे वहाँ मीडिया का बड़ा जमावाडा हो जाता है, लोग भी काफ़ी इकठ्ठा हो जाते हैं, मगर ये पुलिस क्यों नही आती और यदि आती भी है तो लाठियाँ थाने छोड़ के क्यों आती है?
और बाद में पुलिस का बयान आ जाता है कि दोषियों को बख्शा नही जायेगा और कुछ देर बाद ५०-६० में से ५-६ लोग गिरफ्तार भी कर लिए जाते हैं जिन्हें कुछ घंटों में ही छोड़ दिया जाता है, मगर यदि कोई सही कारण से सही व्यक्ति आन्दोलन करता है तो ५०-६० लोगों में से पता नही कैसे १००-११० लोग गिरफ्तार हो जाते हैं जो सालों अदालत के चक्कर लगाते रहते हैं.
क्या ये वाकई कोई संयोग है या कुछ और ? या ये मेरे दिमाग का फिर कोई फतूर इस पर साथियों की सलाह चाहूँगा।

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