कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
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उसकी गलियों में भी जाना छुट गया,
एक बहाना था उसे निहारने का वो छुट गया।
जाने क्या जिद थी कि हम चले जाते थे उन्हें देखने,जिन्होंने खिड़की पे आना कब का छोड़ दिया।
वो परेशां हो जाता था हमें अपनी गली में देखकर,
उसका अब यूं घबराना भी छुट गया।
उस के भाई को पता चल गया हो गा जो अब खिडकी पर भी नही आती, बच कर रहना उस के भाई से.
उस के भाई को पता चल गया हो गा जो अब खिडकी पर भी नही आती, बच कर रहना उस के भाई से.
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