यूं ही बैठे -बैठे एक गीत के बोल याद आ गए
कि ' मुश्किल नही है कुछ भी अगर ठान लीजिये'
कईं दिनों से महंगाई के बारे में लिख और पढ़ रहा था मगर सरकार कि तरफ़ से इस विषय पर किसी बयान कि कंजूसी बड़ी खटक रही थी। मगर कल रात सरकार ने चुप्पी तोडी और किसी कोशिश कि तरफ़ इशारा किया ये बात हम सब जानते हैं कि इस बढ़ती हुई महंगाई को रोकना काफ़ी मुश्किल है मगर यदि सरकार ठान ले तो इसे कम कर ही सकती है।
कम से कम सरकार और रिज़र्व बैंक को फिक्की और BSE से आगे सोचना पड़ेगा। इसी बात का शक था कि क्या सरकार ऐसा कोई कठोर क़दम उठा पायेगी, अब सरकार ने कुछ करों को कम और निर्यात पर नियंत्रण की कोशिश दिखा कर इस ओर इशारा ज़रूर दिया है।
अब सब कुछ सही चलता रहे तो आम आदमी को रहत मिले।
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अधिकतर उपाय बनावटी और लीपापोती वाले हैं, इनसे कुछ नहीं होगा… हाँ, सरकार यदि कम्पनियों और सटोरियों को दबाकर रखे (चुनाव तक) तो महंगाई तात्कालिक कम हो सकती है, लेकिन चुनाव बाद तो जो भी सरकार बने, आम आदमी को पिसना ही है, ये चोंचले सिर्फ़ चुनावी चिंता है और कुछ नहीं… मूल मंत्र है, चार साल तक जमकर लूटो, और लूटने दो, पाँचवें साल कुछ टुकड़े फ़ेंक दो…
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