शनिवार, 5 अप्रैल 2008

आखिर कितना बड़ा है ख़बरों का बाज़ार? कितनी मांग और कितनी पूर्ति?

एक ख़बर पढी और देखी कि अब आकाशवाणी भी अपने श्रोताओं को फ़ोन के माध्यम से खबरें उपलब्ध कराएगा। सुनकर अच्छा लगा मगर एक सवाल भी मन में उठ आया कि कितना बड़ा है ख़बरों का संसार और कितना बड़ा है इसका बाज़ार?और क्या इस सेवा को प्रारम्भ करने से पहले आकाशवाणी ने कोई रिसर्च किया था? बाज़ार में कितने ही खबरिया चैनल्स और अखबार पहले से ही मौजूद हैं। और साथ ही विभिन्न टेलीफोन कंपनियां फ़ोन पर ख़बरों की सेवा वौइस् पोर्टल और sms दोनों द्वारा उपलब्ध करा रही हैं। तो कितना सफल होगा ये नया क़दम जो कि आकाशवाणी ने उठाया है। हो सकता है कि इसका खर्च उपभोक्ता को कम सहना पड़े मगर क्या उपभोक्ता इस सेवा का लाभ लेगा? या ये भी अन्य सरकारी खर्चों की ही तरह एक और घाटे का सौदा साबित होने वाला है। जहाँ तक मुझे लगता है कि उपभोक्ता शायद इस सेवा को लाभ नही ले पायेगा क्यूंकि पहले तो इस सेवा के बारे में अधिकतर लोगों तक जानकारी नही पहुँचाई गई है और न ही पहुँचने वाली और दूसरी और जहाँ शहरों में इसका पता चला है वहाँ के लोग इसमें दिलचस्पी दिखायेंगे इसमें भी मुझे शक ही है।
मेरी राये यही है कि एक और बहतरीन योजना जोकि काफ़ी देर से आई है इसी तरह दम तोड़ देगी जैसे अन्य सरकारी योजनायें तोड़ती रही है।

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