कब तलक तुझको याद करता रहूँगा मैं?
बस यही सवाल है जिसने मुझे परेशां किया है।
वो मुस्कुरा रहा है मेरी तड़पन देखकर,
जिसके ज़ख्मों पे मरहम मैंने लगाया है।
संभल जाता अगर होता कोई दुश्मन मारने वाला,
मेरा तो दिल था जिसने खंजर इस सीने में उतारा है,
भूल जाता है क्यूँ कोई ज़ख्म देकर भी,
और हमने क्यूँ तेरा ग़म इस सीने से लगाया है?
इबादत है मुहब्बत लोगों से सुना था हमने,
मगर वो क्या करे जिसको इस मुहब्बत ने काफिर बनाया है।
हज़ारों बार तेरा ख्याल मुझे रात को उठाकर गया,
और जागते हुए भी नींद सा आलम तेरे ख्याल में पाया है।