कल फिर रात में, हमने उन्हें तड़पते देखा,
यूँही हम पर हंसते देखा, यूँही ख़ुद पर रोते देखा.
जब पूछना चाहा उनसे इसका सबब,
हमने उनकी आँखों में चश्में को उतरते देखा।
सोचते रहे जाने क्या मामला है ये भी,
मगर जितना सोचा ख़ुद की सोच को कमतर देखा।
तड़प उठी थी जो दिल में उनके ज़ख्मो को देखकर,
उनकी हंसी में इन ज़ख्मो का दर्द भी देखा।
बेहतरीन लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंsundar aur alag si chhavi
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...वाह!
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