फिर से याद आने लगे हैं वो,
न जाने क्यूँ फिर से सताने लगे हैं वो,
मैं बचने की कोशिश हज़ार करता हूँ,
पर रह रह कर ख़यालों में आने लगे हैं वो।
रहने लगी हैं रातें, फिर से तन्हा मेरी,
भरी महफिल से उठाकर, तन्हाई में ले जाने लगे हैं वो।
फिर हर एक लम्हा, ज़बान पे नाम है उनका,
मेरे नाम से पहले अपना नाम, लिखवाने लगे हैं वो।
बहुत दिन से ख़ुदा से, कुछ माँगा नही था यूँ तो,
अपना नाम दुआओं में, कहलवाने लगे हैं वो।
लगता नही है दिल, अब किसी भी काम में मेरा,
और दिल में दर्द बनकर, छाने लगे हैं वो।
बड़ी मुश्किल से दिल से, निकालने कोशिश कर रहा हूँ मैं,
मगर जितना भी भूलना चाहूं, उतने ही याद आने लगे हैं वो।
बहुत सुन्दर की रचना की है आपने, बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर.बधाई.
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