मंगलवार, 20 मई 2008

हमेशा चाहता रहा, शायद प्यार करना न आया! कुछ मेरी डायरी से!

उसके बारे में जब भी सोचा मैंने,
तो उसको उस दिन के बाद दूर ही पाया।
वो जो कभी मेरा हमसाया हुआ करता था,
अब तो ख्वाब में भी मैंने उसे गैर पाया।
बड़ा नादान था मैं भी शायद,
हमेशा चाहता रहा, शायद प्यार करना न आया।

उसने हमेशा खेला जज़्बातों से हमारे,
मगर इस दिल को हमेशा उसी पे प्यार आया,
उसने सोचा मुहब्बत के नाम पर जो चाहेगा करवालेगा हमसे,
सच भी था, उसके जाने के बाद हमने ख़ुद को ठगा सा पाया।
बड़ा नादान था दिल जिसे पता सब था,
मगर न ख़ुद पे ऐतबार आया,
हमेशा चाहता रहा, शायद प्यार करना न आया।

के मंजिलें और भी थीं जो साथ तय कर सकते थे हम,
उसे न था मालूम के सफर ज़िन्दगी लम्बा होता है,
हमने हमेशा चाहा के उसे सारी खुशियाँ मिले,
मगर उसे बस कुछ पल की खुशियों पर ही सब्र आया।
मैं सोचता रहा उसके लिए सब कुछ करने की,
वो बेसब्र न मेरे पास आया,
हमेशा चाहता रहा, शायद प्यार करना न आया।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं सोचता रहा उसके लिए सब कुछ करने की,
    वो बेसब्र न मेरे पास आया,
    हमेशा चाहता रहा, शायद प्यार करना न आया।

    अच्छी रचना है..

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  2. मंजिलें और भी थीं जो साथ तय कर सकते थे हम,
    उसे न था मालूम के सफर ज़िन्दगी लम्बा होता है,
    हमने हमेशा चाहा के उसे सारी खुशियाँ मिले,
    मगर उसे बस कुछ पल की खुशियों पर ही सब्र आया।
    अच्छे भाव हैं।

    जवाब देंहटाएं

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