सोमवार, 19 मई 2008

शर्तिया लड़का ही होगा!

ये पंक्तियाँ देखकर अचानक क़दम रुक से जाते हैं। पहले तो मैं केवल वैद्य जी का ये बोर्ड देखकर हँस कर निकल जाता था। मगर बाद मैं जब भी मैं सहारनपुर में होता और बाज़ार जाना होता तो वैद्य जी के बोर्ड को देखने के बाद आसपास गुजरने वाले लोगों को ज़रूर देखता, सहारनपुर के आम बाशिंदों को इसकी आदत है मगर वहाँ से कमी के साथ गुजरने वाले इस बोर्ड को ध्यान से ज़रूर देखते। और उनमे अधिकतर महिलाये जिनमें थोडी बूढी महिलाये जिनको देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनकी या तो कोई बहु है या बेटी है। ऐसे लोग ध्यान से इसको देखते हैं और कुछ सोचते हैं या अपने पास कागज़ पर इसको नोट ज़रूर करते हैं।

इसे देखकर थोड़ा अफ़सोस क्या काफ़ी अफ़सोस होता है कि इस वक्त भी कुछ लोग हैं जो बेटे और बेटी में फर्क महसूस करते हैं। थोडी बेचैनी हुई तो पता किया कि ये दवाई खाता कौन है। मुझे बताया गया ऐसे लोग जिनको कईं बेटियाँ हो गई है वो इस दवाई को अपनी बहुओं को खिलाते हैं। अब ये जवाब सुनकर सर और चकरा गया। ये नही कि बेटियों वाले लोग मगर बहुए या कहूं की महिलाये दवा खाती हैं और दावा ये की बेटा ही होगा? मगर कैसे जितना विज्ञान मैंने पढ़ा है मुझे बताया गया है कि महिलाओं में केवल एक ही गुणसूत्र होता है जिसको X कहते है और मर्द के पास दो यानी X और Y। यानि मर्द के पास ही वो गुणसूत्र होता है जिसके मिलने से महिला के गर्भ में एक लड़के की पैदाईश कि गुन्जायिश हो। यानी लड़का यदि होगा तो उसके लिए मर्द जिम्मेदार होगा और यदि लड़की तो उसके लिए भी मर्द। यानी इसमें मर्द की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि क्या पैदा हुआ। अब सवाल ये उठता है कि यदि महिला को ये दवा दी जायेगी तो लड़का कैसे पैदा होगा? जो काम उसका है ही नही तो दवा उस पर क्या असर करेगी? तो ये वैद्य जी या जो हकीम साहब बैठे हैं और दावा दे रहे हैं वो तो पक्का उल्लू बना ही रहे हैं। मगर सरकार की इतनी महनत के बाद भी लोग अब भी लड़की पैदा होने का दोष किसी महिला पे कैसे डाल सकते है?
यदि इस प्रकार की कोई दवा है तो उसे मर्द को खिलाया जाना चाहिए। मगर इतने साल में मुझे कोई वैद्य या हकीम ऐसा नही मिला जो कहे कि ये दवा मर्द के लिए बनी है और इसे खाने के बाद बेटा होगा। मेरी एक रिश्तेदार है जिनके दो बेटे पैदा हुए उसके बाद वो चाहते थे कि अब उनके घर लड़की आये मगर इसी खावाहिश में उनके घर चार बेटे पैदा हो गए. और अब तक लड़की नहीं आई है उन्हें तो आजतक कोई ऐसा वैद्य नहीं मिला जो उनकी लड़की की ख्वाहिश को पूरा कर सके. क्या वैद्य और हकीम साहब को ऐसी कोई बूटी नहीं मिलती जिससे लड़की पैदा हो सके.
अब एक और रिश्तेदार हैं जिनके पहले से २ लडकियां है और सुना है कि इस बार उन्होंने अपनी पत्नी को यही किसी हकीम साहब की दवा खिलाई है और लड़के की चाहत में पहले जहाँ पत्नी पर जुल्म किया करते थे आजकल बर्तन और झाडू तक पति महोदय ख़ुद ही किया करते हैं। वो नही चाहते कि उनके बेटे को कोई तकलीफ भी हो। मगर ये बात सिचकर और उनके पिछले ईतिहास को देखकर दिल दहल उठता है पहले लड़की होने पर किस प्रकार उन्होंने अपनी पत्नी पर ज़ुल्म किया और वो भी अपने घरवालों के सा मिलकर और यदि इस बार भी हकीम साहब की दवा फ़ैल हो गई तो उनका क्या होगा?
आखिर कब तक ऐसे वैद्य या हकीम लोगों को पागल बनाते रहेंगे और कब तक लोग इस अन्तर को छोडेंगे?
आज मैं अपनी ज़िंदगी के सबसे दुखद अनुभव को बांटना चाहूँगा कि जब मैं tuition पढाया करता था तो एक बच्चा मुझेसे पढ़ा करता था एक दिन मैंने उसके घरवालों के सामने उससे कहा कि यदि नहीं पढ़ेगा तो तुझे कहीं और छोड़ आयेंगे तो उस केवल ८ साल के लड़के ने मुझे जवाब दिया ऐसा नहीं होगा सर मैं अपने घर का इकलौता लौंडा हूँ, बाकी तो तीनों लौंडियाँ हैं. उसका ये जवाब सुनकर मैं हैरान रह गया कि किस प्रकार इतना छोटा बच्चा ये बात सोच सकता है? जिसके बाद मुझे उसके माँ बाप की क्लास लगानी पड़ी. और जब बैठकर सोचा तो ध्यान आया कि किस प्रकार उसकी माता उस पर अपनी बेटियों से ज़्यादा ध्यान देती है और उसी के सामने बेटियों को डांटती हैं. शायद ये मेरा ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था जो मेरे घरकी परम्परा के लगभग उल्टा था।
बात वैद्य जी की हो रही थी तो इस बार मेरा इरादा बन रहा है कि वैद्य जी से ये राज़ पूछकर ही आऊंगा कि कैसे मर्द के गुन महिलाओं में पैदा किए जा सकते हैं ?आख़िर कौनसा विज्ञान है जो यहाँ काम करता है?

4 टिप्‍पणियां:

  1. इतने अच्छे लेक को लिखने के लिए धन्यवाद।
    कभी आपने किसी कहानी, धर्म ग्रंथ में पढ़ा है कि जब राजा, या किसी अन्य महापुरुष के तीन या चार या अनेक विवाह करने पर भी संतान नहीं हुई तो किसी ॠषि ने उसे खाने को फल दिया ? फल सदा पत्नी या कहें पत्नियों को ही दिया जाता था। किसी के मस्तिष्क में यह बात नहीं आई कि एक पत्नी तो बाँझ हो सकती है पर तीन या चार या अनेक कैसे ? वैसे महाभारत में यह माना गया कि कई बार संतान पति की असमर्थता के कारण भी नहीं होती है।
    आपको पता है कि बहुत से लोगों से जब कितने बच्चे हैं पूछा जाए तो वे केवल पुत्रों को गिनाते हैं ? कि बहुत से लोग केवल बेटों को मंहगे स्कूलों में पढ़ाते हैं ? कि बहुत से घरों में केवल बेटों को दूध दिया जाता है ? सूची बहुत लम्बी बन सकती है।
    घुघूती बासूती

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  2. ऐसे ही कितने टेंट लगे चलते फिरते दवाखाने भी बहुतेरे है जो शर्तिया मरदाना इलाज करते है......

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  3. और बेटी को जन्म देने का दोष भी औरत को ही झेलना पड़ता है ।

    उम्दा लेख।

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