आज एक ख़बर पढी के हमारे प्यारे यानी के vodafone के प्यारे से कुत्ते के बारे में हमारे कर्तव्य निष्ठ पशु सेवकों को कुछ शिकायत है सुनकर वैसे कोई अचम्भा नही हुआ क्यूंकि ये कोई नई बात नही है मगर थोड़ा अफ़सोस ज़रूर हुआ कि इनकी तकलीफ क्या है? जहाँ इंसानों को काम नही मिलता वही यदि ये कुछ कमा रहे हैं तो क्या बुरा है। और रही बात महनत ओर तकलीफ की तो इंसानों को काम करते वक्त क्या कम तकलीफ झेलनी पड़ती है?
वहाँ तो कोई मदद के लिए नही आता।
अब तो मैं सोच रहा हूँ कि अपने पडोसियों से कहूं कि अपने कुत्ते के साथ खेलते हुए उससे गेंद पकड़कर लाने के लिए न कहें क्यूंकि कहीं ये बात हमारे पशु सेवकों ने दीख ली तो समझ लीजियेगा कि अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे।
musibat hai yh to....jankari ke liye dhanywad
जवाब देंहटाएंकुछ और काम बचा नहीं है पशुसेवकों को??
जवाब देंहटाएंबोझा ढ़ोते बच्चे नहीं दिखते उन्हें?
हद है!!!
सार्थक पोस्ट. आभार.