रविवार, 12 अक्तूबर 2008

मैं ही बेवफा हूँ, यही चाहो तो बता देना! हाल ऐ दिल!


फिर कोई पुराना दोस्त हमसे मिला आकर,
फिर किसीने तेरे बारे में पूछा हमसे,
फिर से हमने उसे तेरे बारे में बताया,
वो तो चला गया, पर न जाने कैसे हमने दिल को समझाया।

यूँ, कोशिश अपनी भी यही होती है,
के तुझे न याद करें कभी,
पर उन लोगों का क्या करें,
जिनकी ज़बान से हमारा नाम एक साथ ही निकलता है।


कुछ पुराने दोस्त हैं,
अगर हो सके तो उनको समझा देना,
मैं ही बेवफा हूँ, यही चाहो तो बता देना,
पर उनसे कहना, न पूछे हमसे तेरे बारे में,
बस इतनी गुज़ारिश हैं, यही ताक़ीद उनको कर देना।


हर गम को बर्दाश्त करने की ताक़त है यूँ तो हम में,
बस एक तेरा गम है जो दिल से जाता नही है,
और अगर जाने लगे भी तो क्या है,
कोई उसको जाने देता नही है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है बहुत सुन्दर । आच्छा लिखा है आपने ।

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है रचना मे कवि मन की एक कसक नजर आती है।

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  3. कुछ पुराने दोस्त हैं,
    अगर हो सके तो उनको समझा देना,
    मैं ही बेवफा हूँ, यही चाहो तो बता देना,
    पर उनसे कहना, न पूछे हमसे तेरे बारे में,
    बस इतनी गुज़ारिश हैं, यही ताक़ीद उनको कर देना।

    बहुत खूब

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  4. सुंदर रचना।
    हर गम को बर्दाश्त करने की ताक़त है यूँ तो हम में,
    बस एक तेरा गम है जो दिल से जाता नही है,
    और अगर जाने लगे भी तो क्या है,
    कोई उसको जाने देता नही है।
    ....शायद इसी स्थिति के लिए कहा गया है इश्क ने जालिम निकम्मा बना दिया वरना आदमी थे हम भी काम के.......

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ पुराने दोस्त हैं,
    अगर हो सके तो उनको समझा देना,
    मैं ही बेवफा हूँ, यही चाहो तो बता देना,
    पर उनसे कहना, न पूछे हमसे तेरे बारे में,
    बस इतनी गुज़ारिश हैं, यही ताक़ीद उनको कर देना।

    बहुत ख़ूब...अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दे रही हूं...

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