तमन्ना सी है जगी हुई, आज फिर न जाने क्यूँ,
शायद फिर किसी एहसास ने, सर उठाया है,
ये निगाहें लगी हुई है, दरवाज़े पे क्यूँ,
शायद फिर किसके आने के अरमान ने, सर उठाया है।
ये वही दिन था, जब साथ साथ थे हम दोनों,
फिर इसी दिन ने, एक दिया अरमानो का जलाया है।
मैं सोच कर बैठा था के, न याद करूँगा तुझे,
फिर सुबह से, इन हिचकियों ने तड़पाया है।
है हैरान देखकर, ग़म भी ये हमारे,
क्या यही वो शख्स है, जिसको हमने रुलाया है?
निकलेगा जब चाँद तो, बुझ जाएगा दिल मेरा,
तू मेरे जितना क़रीब था, तुझे आज उतना ही दूर मैंने पाया है।
keep writing
जवाब देंहटाएंgood composition
regards
waah.....bahut sundar likha hai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंनदीम अच्छे मनोभाव हैं।
जवाब देंहटाएंbahut khubsuat
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंहौसला बढ़ाने के लिए सभी साथियों का धन्यवाद्.
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