कभी उठाकर, गिराती है,
और कभी गिराकर, उठाती है,
ये ज़िन्दगी भी अजब चीज़ है यारों,
कभी अपनाती है, कभी ठुकराती है।
कभी इन निगाहों को, देती है, सपना कोई,
कभी हकीक़त की, खुशियों में भी आग लगाती है,
ये ज़िन्दगी भी एक आतिश है, अजीब सी,
कभी देती है ठंडक, और कभी इंसान को ही, जलाती है।
न जाने कितने, गुज़र गए, सुलझाते ये पहेली,
पर ये नही, किसीकी समझ में आती है,
ये ज़िन्दगी भी एक, अनसुलझी है पहेली,
इसको जितना सुलझाओ, ये उतना ही उलझ जाती है।
कभी उठाकर, गिराती है,
और कभी गिराकर, उठाती है,
ये ज़िन्दगी भी अजब चीज़ है यारों,
कभी अपनाती है, कभी ठुकराती है।
ये ज़िन्दगी भी अजब चीज़ है यारों,
जवाब देंहटाएंsahi hai...ise samajhna bada mushkil hai. achchi kavita hai.
Bahut khub.
जवाब देंहटाएंइसको जितना सुलझाओ, ये उतना ही उलझ जाती है।
जवाब देंहटाएंsulajhaate raho bhaai zulf-e-jaanaa ki tarah.
bahut sundar
न जाने कितने, गुज़र गए, सुलझाते ये पहेली,
जवाब देंहटाएंपर ये नही, किसीकी समझ में आती है,
ये ज़िन्दगी भी एक, अनसुलझी है पहेली,
इसको जितना सुलझाओ, ये उतना ही उलझ जाती है।
बेहतरीन...