कोई तस्वीर धुंधली सी निगाहों में क्यूँ है?
जानता जिसको नही हूँ वो चेहरा, ख़यालों में क्यूँ है?
क़दम जो भी उठा रहा हूँ, जाता है उसके घर की तरफ़,
हर क़दम यूँ मेरा आज, मेरे ख़िलाफ़ क्यूँ है?
यूँ तो दिमाग कर रहा है मना, दिल को सोचने से उसके बारे में,
ये मेरा दिल आज हर ख़याल से, बेपरवाह क्यूँ है?
लगता है एक बार फिर खाना चाहता है धोखा ये दिल,
इतनी ठोकरों के बाद भी ये मचलता क्यूँ है?
होती रही रात भर ख़ुद से बातें उनके आने की,
इन नादानियों से अपना गहरा सा नाता क्यूँ है?
यूँ तो दिमाग कर रहा है मना, दिल को सोचने से उसके बारे में,
जवाब देंहटाएंये मेरा दिल आज हर ख़याल से, बेपरवाह क्यूँ है?
भाव अच्छे हैं और पकड भी मज़बूत है, पर मियाँ तकनिकी तौर पर इस ग़ज़ल में कुछ खामियां दिख रही हैं, यहाँ आपका काफिया 'यों' का है ख्यालों,ख्वाबों जो की मतले में है पर बाकी के शेरों में यह नदारद है. थोड़ा काफिये का ध्यान रखेंगे तो इस ग़ज़ल में बहुत दम है. मेरी शुभकामनायें.
लगता है एक बार फिर खाना चाहता है धोखा ये दिल,
जवाब देंहटाएंइतनी ठोकरों के बाद भी ये मचलता क्यूँ है?
होती रही रात भर ख़ुद से बातें उनके आने की,
इन नादानियों से अपना गहरा सा नाता क्यूँ है?
बहुत दम है
कोई तस्वीर धुंधली सी निगाहों में क्यूँ है?
जवाब देंहटाएंजानता जिसको नही हूँ वो चेहरा, ख़यालों में क्यूँ है?
क़दम जो भी उठा रहा हूँ, जाता है उसके घर की तरफ़,
हर क़दम यूँ मेरा आज, मेरे ख़िलाफ़ क्यूँ है?
बहुत ख़ूब...