मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

अब हम साथ नही हैं। त्रिवेणी!

ख़ता उसकी न पूछिए,
ख़ता मेरी न बताईये,
!
!
!
बस याद ये रखिये के अब हम साथ नही हैं।

7 टिप्‍पणियां:

  1. दमदार तीन लाईना है भाई.


    इक फोन कर लेते तो शायद दूरियां कुछ कम हो जाती.

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  2. रचना प्रस्तुति बढ़िया है कम शब्दों में

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  3. संजीवजी क्या करें उन्होंने हमारा फ़ोन न उठाने की क़सम जो खायी है.

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  4. मुझको रुलाने ये फिर आ गए हैं,
    रात भर जगाने ये फिर आ गए हैं,
    !
    !
    !
    तेरे अफसाने भी न दुश्मन मेरे हैं॥
    nadem ye vaali achhi hai .....

    par upar vaali me meter ki gadbad hai yaar...albatta soch achhi hai ...

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  5. डॉ साहब, यही सीखने के लिए तो आप लोगों के सामने लिखना शुरू किया है, अगर मीटर की ग़लती भी बता देते तो मेहरबानी होती.

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  6. चलिये, डॉक्टर साहब का गाईडेन्स मिल रहा है...शुभकामनाएँ.

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  7. Udan Tashtari साहब
    धन्यवाद. कोशिश जारी है, कभी न कभी तो अच्छा सही लिखना सीख ही लेंगे, तब तक तो ये ही सही.

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