कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
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तुम्हे यूँ लौटकर ना आना था,टूटा हुआ वो ख़्वाब फिर से तो ना दिखाना था,मैं यूँही सब्र कर चूका था ज़ालिम,यूँ तमाशा सर-ऐ-महफ़िल तो ना दिखाना था ।
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